सोमवार, 30 नवंबर 2015

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卐 सत्यराम सा 卐
काल न सूझै कंध पर, मन चितवै बहु आश ।
दादू जीव जाणै नहीं, कठिन काल की पाश ॥ 
दादू काल हमारे कंध चढ, सदा बजावै तूर ।
कालहरण कर्त्ता पुरुष, क्यों न सँभाले शूर ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya ~

भगवान!

किसी समय एक आदमी के पास बहुत से पशु-पक्षी थे। उसने सुना कि हजरत मूसा पशु-पक्षियों की भाषा समझते हैं। वह उनके पास गया और बहुत हठ करके उसने उनसे वह कला सीखी। तब से वह आदमी अपने पशु-पक्षियों की बातचीत सुनने लगा।

एक दिन मुर्गे ने कुत्ते से कहा कि घोड़ा शीघ्र ही मर जायेगा। यह सुनकर उस व्यक्ति ने घोड़े को बेच दिया ताकि हानि से वह बच जाये। कुछ दिनों के बाद उसने उसी मुर्गे को कुत्ते से कहते सुना कि जल्द ही खच्चर मरने वाला है। मालिक ने खच्चर को भी बेच दिया। फिर मुर्गे ने कहा कि अब गुलाम की मृत्यु होनेवाली है। और मालिक ने गुलाम को भी वैसे ही बेच डाला और बहुत खुश हुआ कि ज्ञान का इतना-इतना फल प्राप्त हो रहा है। तब एक दिन उसने मुर्गे को कुत्ते से कहते सुना कि यह आदमी खुद मर जानेवाला है। अब तो वह भय से कांपने लगा। वह दौड़ता हुआ मूसा के पास पहुंचा और पूछा कि अब मैं क्या करूं?

मूसा ने कहा, ‘जाओ और अपने को भी बेच डालो।’

भगवान! मौलाना रूमी की इस बोध-कथा का संदेश क्या है?

मनुष्य पूरे जीवन में यही कर रहा है; अपने को बेच रहा है और बदले में जो पा रहा है वह बिलकुल निर्मूल्य है। खुद को बेच-बेच कर तिजोड़ी भर जाती है। आदमी खुद खाली हो जाता है, भरी तिजोड़ी छोड़ जाता है। खुद के हाथ खाली, खुद का जीवन खाली, वस्तुओं का ढेर चारों तरफ लग जाता है। क्या मूल्य है इसका, क्या अर्थ है?

मृत्यु के क्षण में पता चलता है कि जो भी बहुमूल्य था, वह हमने कमाया नहीं। जो भी कमाने योग्य था उसे हमने गंवा दिया। हमने कुछ नया तो पाया नहीं, जो हम लेकर आये थे उसे भी खो कर जा रहे हैं। पर तब बहुत देर हो गई होती है। मृत्यु के क्षण में कुछ भी किया नहीं जा सकता। क्योंकि मौत प्रतीक्षा न करेगी। तुम्हारे लिए रुकेगी नहीं। और अगर मौत रुक भी जाये तो पक्का भरोसा रखना कि तुम फिर वही करोगे जो तुम जीवन भर करते रहे थे; तुम उसे ही दुहराओगे।......osho

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