रविवार, 29 नवंबर 2015

= ५८ =


卐 सत्यराम सा 卐
दादू जिहिं बरियां यहु सब भया, सो कुछ करो विचार ।
काजी पंडित बावरे, क्या लिख बांधे भार ॥
दादू जब यहु मनहि मन मिल्या, तब कुछ पाया भेद ।
दादू लेकर लाइये, क्या पढ़ मरिये वेद ॥ 
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साभार ~ Mohan Sharma ~
एक समय की बात है एक वैज्ञानिक था, उसे चिडियों को पालने का बहुत शौक था ।एक बार वह मेले से तोते का दो अण्डा लाया और कुछ दिनों के बाद उसमें से दो चूजे निकले, वह उन चूजों को खुब प्यार करता तथा उन्हें तरह तरह के ज्ञान की बातें सिखलाता गति के नियम, उड़ने का नियम तथा विज्ञान की बहुत सारी बातें बताता, धीरे धीरे कर के वे तोते बहुत विद्वान हो गये थे। 
एक दिन वैज्ञानिक मर गया, मरने के बाद उसके रिश्तेदार आये तथा जब उन्होंने तोतों को देखा तो उनको खुला छोड देना ही उचित समझा और उन्हें एक पेड पर छोड दिया । तोते पेड़ पर बैठे थे तभी एक बडा तोता आया और उन दोनों से बातें करने लगा, बातों बातों में उसने नीचे से आते एक बिल्ली को देखा और उन दो तोतों से पुछा कि क्या तुम उड़ना जानते हो? तो तोतों ने कहा हां हम उडने के नियम जानते हैं, जब कोई पंछी अपना पर फड़फड़ाते है तो उडने लगते हैं । 
तब बडे तोते ने कहा अरे मैं नियम नहीं पुछ रहा हूँ, और वह उडने लगा और बोला कि अगर तुम उड़ना नहीं जानते तो बाकी के तुम्हारे सारे ज्ञान तुम दोनों को बचा नहीं सकते हैं, राम राम ------- और इस तरह बिल्ली उन दोनों को मार कर खा गई । जिस तरह से और सारे ज्ञान होने के बावजूद तोते खुद को बचा नहीं सके, ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अगर दुनिया के सारे ज्ञान क्यों न हो जाए अगर उसे आत्म ज्ञान, स्वयं का ज्ञान नहीं हुआ तो वह सारे ज्ञान किसी काम के नहीं हैं । प्रेम रावत ~

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