सोमवार, 30 नवंबर 2015

पद. ४०८

#‎daduji‬
卐 सत्यराम सा 卐

४०८.(मराठी) अनन्य शरण । त्रिताल ~ 
मेरे गृह आव हो गुरु मेरा, मैं बालक सेवक तेरा ॥ टेक ॥ 
मात पिता तूँ अम्हचा स्वामी, देव हमारे अंतरजामी ॥ १ ॥ 
अम्हचा सज्जन अम्हचा बँधू, प्राण हमारे अम्हचा जिन्दू ॥ २ ॥ 
अम्हचा प्रीतम अम्हचा मेला, अम्हची जीवन आप अकेला ॥ ३ ॥ 
अम्हचा साथी संग सनेही, राम बिना दुख दादू देही ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें अनन्य शरण दिखा रहे हैं कि हे गर्भवास में उपदेश करने वाले हमारे गुरुदेव राम ! आप हमारे हृदय रूपी घर में अब प्रकट होइये । मैं आपका अबोध बालक सेवक हूँ । हे अन्तर्यामी ! आप ही हमारे माता, पिता, स्वामी, देवता, सज्जन, भ्राता, जीवित रखने वाले प्राण और प्रियतम, हमारे सम्मेलन रूप हमारे जीवन सहायक और सदैव संग रहने वाले स्नेही, हमारे तो सब कुछ आप ही केवल हैं । हे राम ! आपके बिना हमारे जीवात्मा को भारी दु:ख हो रहा है ।

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