शनिवार, 26 दिसंबर 2015

= विन्दु (१)५५ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*विन्दु ५५ दिन ३७*
*= अकबर के पूर्व जन्म का वृत्तांत =*
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कहा भी है -
"गुरु दादू से बादशाह, पूछी साहिब राह ।
तब इस साखी से कही, याही मार्ग जाह ।"
उक्त साखी द्वारा उपदेश देकर दादूजी ने कहा - पहले जन्म में तुम तपस्वी ही थे, किंचित् विघ्न हो जाने से तथा तुम्हारे मन में भोगों की सूक्ष्म वासना रहने के कारण ही इस वर्तमान जन्म को प्राप्त हुये हो । तुम किंचित नेत्र बंद करके ध्यान से देखो ।
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बादशाह ने नेत्र बंद करके ध्यान द्वारा देखा तो उसे एक तपो-भूमि दिखाई दी फिर नेत्र खोले तब दादूजी ने पूछा - क्या दिखाई दिया ? अकबर ने कहा - एक तपोभूमि दिखाई दी है । दादूजी ने कहा - वह तुम्हारे पूर्व जन्म की तपोभूमि थी । तुमने उसी स्थान पर पूर्व जन्म में तप किया था । तुम योग भ्रष्ट हो, अब पुनः निष्काम भाव से भगवान् का भजन करोगे तो निश्चय भगवान् को प्राप्त हो जाओगे । फिर सत्संग समाप्त कर दिया गया ।
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अकबर आदि सब अपने-अपने भवनों में चले गये । ३७वें दिन, के समय अकबर बादशाह ने अपनी सभा में सीकरी में निवास करने वाले काजी, मुल्लां, पण्डित, कवि आदि को ईश्वर संबन्धी विचार करने के लिये निमंत्रण दिया था और उस सभा में दादूजी को भी आने की प्रार्थना की थी, जब सभा भर गई तब दादूजी को बुलवाया गया ।
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दादूजी अपने शिष्यों के साथ आये तब सबने उनको प्रणाम किया और आसन पर बैठ जाने पर ईश्वर संबन्धी विचार चलने लगा । सबने अपने २ विचार व्यक्त किये । सृष्टि रचना संबन्धी विचार के समय उन विद्वानों में अत्यधिक खैंचातान बढ़गई । काजी, मुल्लां आदि कुछ अन्य ही कहते थे और पंडितों में भी बहुत मतभेद दिखाई दे रहा था । उस खैंचातान को देखकर अकबर बादशाह ने दादूजी से प्रार्थना की - स्वामिन् ! आप अनुभवी हैं, अपना मत बताकर इस खैंचतान को मिटा दीजिये । मुझे निश्चय है आपके वचनों से यह विवाद अति शीघ्र ही मिट जायगा ।
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*= अकबर सभा में विवाद अन्त =*
तब दादूजी ने यही सोचकर कि इस विवाद को मिटाना ही हितकर है बोले -
"दादू जिहिं बारियां यहु सब भया, 
सो कुछ करो विचार ।
काजी पण्डित बावरे क्या लिख बांधे भार ॥
हे अज्ञान तत्व काजी, पण्डितों ! विद्या के अभिमान से मत्त हो रहे हो, पुस्तकें लिख-लिख कर आपने यह क्या भार बांध रक्खे हैं ? यह तो आप लोग ही जानें मुझे तो इसका पता लगाना नहीं है । मैं जो आप लोगों से पूछ रहा हूँ उसका आप लोग विचार करके उत्तर दें और नहीं दे सकें तो इस विवाद को यहां ही समाप्त करदें ।
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मेरा प्रश्न है जिस समय यह सब संसार परमात्मा से उत्पन्न हुआ था उस समय उस परमात्मा का स्वरूप कैसा था ? दादूजी का उक्त प्रश्न सुनकर सब मंत्र-मुग्ध से रह गये, किसी ने कुछ भी नहीं कहा और न किसी ने दादूजी से पूछने का ही साहस किया । तब दादूजी ने कहा - सज्जनों ! ईश्वर स्वरूप का ज्ञान विद्या पढ़ने से ही नहीं होता है । ईश्वर प्राप्ति का साधन जो शास्त्र ने बताया है, उस साधन के करने से ईश्वर स्वरूप का ज्ञान होता है अतः आप सबको अपने अपने अध्ययन के समान ईश्वर प्राप्ति का साधन भी करना ही चाहिये ।
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यह सुनकर सभी काजी, मुल्लां, पण्डित, कवि आदि ने मौन द्वारा दादूजी के वचन स्वीकार किये और सभा समाप्त कर दी गयी । सब अपने अपने स्थानों को चले गये, दादूजी भी शिष्यों के सहित बाग में आ गये । उक्त साखी में स्थित प्रश्न का उत्तर आगे चलकर दादूजी के शिष्य बखनाजी ने अपनी वाणी में यह दिया है -
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"जिंहिं बरिया यहु सब भया, सो हम किया विचार ।
बखना बरियाँ खुसी की, कर्ता सिरजन हार ॥"
अर्थात् जिस समय इस संसार की रचना हुई थी, उस समय का हमने विचार किया है । वह समय प्रसन्नता का था । अतः संसार दशा से पूर्व परब्रह्म आनन्द स्वरूप है । सर्व वाद-विवाद को छोड़कर उस आनन्द स्वरूप परब्रह्म का ही भजन करो तब ही उस ब्रह्म के स्वरूप का ज्ञान होगा, विवाद से कुछ नहीं होगा ।
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ऐसा ही उक्त प्रसंग है कहा भी है -
"गुरु दादू गये सीकरी, तहँ यह साखी भाख ।
उत्तर भयो न काहु से, बखने उत्तर दाख ॥"
ऐसा ही दादूजी महाराज का भी भाव ज्ञात होता है ।
= इति श्री दादूचरितामृत सीकरी सत्संग दिन ३७ विन्दु ५५ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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