बुधवार, 30 दिसंबर 2015

= विन्दु (१)५७ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*विन्दु ५७ दिन ३९*
*= (अखंड सेवा, सच्चा सेवक, नख शिख स्मरण, अध्यात्म-ध्यान वर्णन) =*
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३९वें दिन सूर्योदय होने पर अकबर सत्संग के लिये बाग में दादूजी के पास आया और प्रेमपूर्वक मस्तक नमाकर प्रणाम करते हुये हाथ जोड़कर सामने बैठ गया फिर कुछ क्षणों के पश्चात् बोला स्वामिन् ! परमात्मा की अखण्ड सेवा का क्या स्वरूप है ? आप मुझे बताने की अवश्य कृपा करें । आपके बताने से ही मैं समझ सकूंगा ।
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*= अखण्ड सेवा तथा सच्चा सेवक =*
अकबर बादशाह का उक्त प्रश्न सुनकर परम दयालु दादूजी महाराज बोले -
"दादू जब लग राम है, तब लग सेवक होय ।
अखंडित सेवा एक रस, दादू सेवक सोय ॥"
जब तक राम अपने से भिन्न भासता है, तब तक निरन्तर भक्ति करते हुये सेवक बना रहता है, वही अखंड सेवा है । जो सेवक अखण्डित सेवा से सेव्य में एक रस होकर मिल जाता है, वही सच्चा सेवक कहा जाता है ।
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दादू जैसा राम है, तैसी सेवा जाणि ।
पावेगा तब करेगा, दादू सो परमाणि ॥
जैसे राम अखण्ड हैं, वैसी ही राम की अखण्ड सेवा होती है । अखण्ड सेवा करने से ही राम की प्राप्ति होती है, ऐसा जानकर जो निरन्तर भक्ति करेगा, वह राम को अवश्य प्राप्त करेगा । राम को प्राप्त कर लेता है, वही प्रामाणिक भक्त माना जाता है ।
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सांई सरीखा सुमिरण कीजे , सांई सरीखा गावे ।
सांई सरीखी सेवा कीजे, तब सेवक सुख पावे ॥
जैसे परमात्मा सच्चिदानन्द स्वरूप हैं, वैसे ही सच्चिदानन्दरूप से उनका स्मरण करना चाहिये । जैसे परमात्मा के बल प्रभावादि अपार हैं, वैसे ही उनका यश-गान करना चाहिये । परमात्मा अखण्ड हैं, उनकी भक्ति भी अखंड ही करना चाहिये । जब उक्त रीति से कीर्तन, स्मरण और प्रीति करता है, तब सेवक ब्रह्मानन्द को प्राप्त होता है, इससे उक्त प्रकार की सेवा अखण्ड है और उक्त प्रकार का सेवक सच्चा है ।
(क्रमशः)

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