मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

= १३१ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू कहै-उठ रे प्राणी जाग जीव, अपना सजन संभाल । 
गाफिल नींद न कीजिये, आइ पहुंता काल ॥ 
समर्थ का शरणा तजै, गहै आन की औट । 
दादू बलवंत काल की, क्यों कर बंचै चोट ॥ 
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साभार ~ Ritesh Srivastava ~
वही व्यक्ति बुद्धिमान हो जो अपनी आत्मा के प्रति सचेत है और उसके संगीत को बचा लेता है जो ऐसा करता है उसका स्वतः ही सबकुछ बच जाता है ॥हरी ॐ॥ 
महर्षि रमण अपने आश्रम मे बैठे थे और अनुयायियों को उपदेश दे रहे थे, तभी एक युवक ने महर्षि से एक प्रश्न पूछा कि है महात्मन् हमारे जीवन मे ऐसा क्या है जिसे बचाना जरूरी है ? तब महर्षि मुस्कराते हुए बोले जो चीज बचाना जरूरी है वह है स्वयं की आत्मा । उनका संगीन उत्तर सुनकर युवक थोड़ा चकित हो गया पर बोला कुछ नहीं । युवक के भाव देखकर महर्षि ने उसे विस्तार पुर्वक अपनी बात को आगे बताया । एक वृद्ध संगीतकार किसी गहन वन मे होकर गुजर रहे थे उनके पास एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्रायें थी । जंगल में एक जगह डाकुओ ने उसे घेर लिया, उन्होंने उससे उसका सारा धन छीन लिया और साथ मे उसकी वीणा भी छीन ली । तब उस वृद्ध ने डाकुओं के सरदार को कहा कि आप लोग बेशक मेरा पूरा माल ले लें पर कृपा करके मेरी वीणा मुझे वापस दे दें । वैसे भी वो आपके किसी काम की नहीं है औरमैं उसके बगैर कुछ नहीं हूँ । इसके बिना मैं रह नहीं सकता हूँ । उसकी बात सुनकर सरदार चौंक गया कि यह बूढ़ा अपने धन को न माँग कर सिर्फ वीणा माँग रहा है । वैसे भी वो हमारे किसी काम कि नहीं है उसने उस बूढ़े को वो वीणा वापस कर दी उसे पाकर वृद्ध इस तरह खुश हो गया मानो उसे उसकी सबसे कीमती चीज मिल गई हो ।
वृद्ध उसे लेकर वहीं घनघोर अँधेरी रात में वीणा बजाने लगा । वहाँ के माहौल में वीणा के अलौकिक स्वर गुंजने लगे । इन स्वरों पर शुरू में तो डाकुओं पर कुछ असर नहीं हुआ न उन्होंने इस और ध्यान दिया पर कुछ देर बाद उन पर उस संगीत का ऐसा असर हुआ कि उनकी आँखें भीग गई वे सभी उस वृद्ध के चरणों मे गिर पड़े और उससे लूटा सारा धन उसे वापस कर दिया ।
इस कथा को सुनाकर महर्षि बोले यही दशा हर मनुष्य की है जो प्रायः प्रतिदिन लुटा जा रहा है लेकिन इनमें बुद्धिमान वह है जो अपनी आत्मा के प्रति सचेत है और उसके संगीत को बचा लेता है जो ऐसा कर लेता है उसका स्वतः ही सब कुछ बच जाता है ॥ वन्दे मातरम् ॥




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