सोमवार, 28 दिसंबर 2015

= १२८ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू खोई आपणी, लज्जा कुल की कार ।
मान बड़ाई पति गई, तब सन्मुख सिरजनहार ॥ 
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साभार ~ नरसिँह जायसवाल ~

कुल मरजादा खोय के, खोजिन पद निरबान। 
अंकुर बीज नसाय के, नर भये विदेही थान ॥ 

जिन महापुरुषों ने कुल-वर्ण की मर्यादा एवं अहंकार का त्याग कर, मोक्षपद की खोज की, वे श्रेष्ठ मनुष्य अंकुर - बीज रूप समस्त अहंकार तथा वासना को पूर्णतः नष्ट कर विदेह - स्थान(देह रहते देहाभिमान से मुक्त्त, आत्मलीन स्थिति) एवं मोक्षपद को प्राप्त हुए। 

संत कबीरदास !

सौजन्य -- बीजक रमैनी !



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