卐 सत्यराम सा 卐
दादू खोई आपणी, लज्जा कुल की कार ।
मान बड़ाई पति गई, तब सन्मुख सिरजनहार ॥
================================
साभार ~ नरसिँह जायसवाल ~
कुल मरजादा खोय के, खोजिन पद निरबान।
अंकुर बीज नसाय के, नर भये विदेही थान ॥
जिन महापुरुषों ने कुल-वर्ण की मर्यादा एवं अहंकार का त्याग कर, मोक्षपद की खोज की, वे श्रेष्ठ मनुष्य अंकुर - बीज रूप समस्त अहंकार तथा वासना को पूर्णतः नष्ट कर विदेह - स्थान(देह रहते देहाभिमान से मुक्त्त, आत्मलीन स्थिति) एवं मोक्षपद को प्राप्त हुए।
संत कबीरदास !
सौजन्य -- बीजक रमैनी !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें