मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

पद. ४३१

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४३१. भयभीत भयानक । दीपचन्दी ~
डरिये रे डरिये, परमेश्‍वर तैं डरिये रे । 
लेखा लेवै, भर भर देवै, ताथैं बुरा न करिये रे, डरिये ॥ टेक ॥ 
सांचा लीजी, सांचा दीजी, सांचा सौदा कीजी रे । 
सांचा राखी, झूठा नाखी, विष ना पीजी रे ॥ १ ॥ 
निर्मल गहिये, निर्मल रहिये, निर्मल कहिये रे । 
निर्मल लीजी, निर्मल दीजी, अनत न बहिये रे ॥ २ ॥ 
साहि पठाया, बनिजन आया, जनि डहकावै रे । 
झूठ न भावै , फेरि पठावै, कीया पावै रे ॥ ३ ॥ 
पंथ दुहेला, जाइ अकेला, भार न लीजी रे । 
दादू मेला, होइ सुहेला, सो कुछ कीजी रे ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव परमेश्‍वर और भयानक कर्मों से डरने का निर्देश करते हैं कि हे मानव ! उस समर्थ परमेश्‍वर से और पाप आदि कर्मों से डरते रहना, क्योंकि हम तुमको बारम्बार उपदेश करते हैं कि अपने हृदय में परमेश्‍वर का भय रख कर ही जीवन - यात्रा बिताइये अर्थात् वह प्रभु तुम्हारे मनुष्य - जन्म का हिसाब लेंगे और तुम्हारे कर्मों के अनुसार ही तुम्हारे भावी जन्म का विधान बनाकर आगे जन्म देंगे । इसलिये काया, मन, वचन से निषिद्ध कर्मों का त्याग करिये । सत्य - स्वरूप परमेश्‍वर को हृदय में देखते हुए लेन - देन आदि कर्म करिये और उस सत्य स्वरूप परमेश्‍वर का नाम स्मरण करते रहो । मिथ्या मायिक कार्य में आसक्ति छोड़कर विषय - वासनाओं का त्याग करिये और निर्मल, माया आदि मल रहित शुद्ध ब्रह्म को, अन्तर्मुख वृत्ति से ग्रहण करके उसी में स्थिर रहो तथा उत्तम साधक पुरुषों को शुद्ध ब्रह्म का उपदेश करिये । इस प्रकार निर्मल ब्रह्म को ही सत् शास्त्र, सतगुरु के उपदेश द्वारा ग्रहण करिये और उसी शुद्ध ब्रह्म का उपदेश दीजिए । अन्यत्र मार्ग पर नहीं चलना, क्योंकि परमात्मा रूपी साहूकार ने इस संसार में जीव को मनुष्य देह देकर भेजा हैतथा सत्कर्म और भजन रूप व्यापार करने का आदेश दिया है । इसलिये अब माया रूप संसार को देखकर विषय - वासनाओं में नहीं बहकाना, क्योंकि उस परमेश्‍वर को मिथ्या विषयों का व्यवसाय अच्छा नहीं लगता है अर्थात् तुम - विषय वासनाओं में ही अपने जीवन को बिताओगे, तो परमेश्‍वर फिर तुम्हें चौरासी में जन्म देंगे, क्योंकि फिर तुम अपने निषिद्ध कर्मों का फल वहाँ भोगोगे अर्थात् परमेश्‍वर की प्राप्ति का मार्ग तो अति कठिन है । अतः उसमें अकेले को ही जाना पड़ता है । इसलिये निषिद्ध और सकाम कर्मों के भार को नहीं उठाना । जो भी कर्म करो, वह निष्काम भाव से, ईश्‍वर अर्पण बुद्धि से करो । जिससे जीव आत्मा और ब्रह्म का अभेद रूप मिलन सुगम होवे, वही अद्वैत विचार करिये । 

Fear, O friend, fear, fear the Supreme Lord. 
He takes account of your deeds and makes recompense 
in full; therefore, perform no evil deeds. 
Take the truth, give the truth, let truth 
be the hallmark of your dealings. 
Preserve the truth, reject falsehood, 
and no poison should you drink. 
Hold to the pure, stay in the pure, 
and speak what is pure. 
Take the pure, give the pure, 
and float not adrift elsewhere. 
What the Merchant sent, you have come to purchase; 
be not cheated in trade. 
He likes not untruth; He will send you again; 
you shall receive what you sow. 
On the difficult path, alone shall you go; take no load. 
Do some such work whereby the blissful union 
may be achieved, O Dadu.

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