मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

पद. ४०९

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 

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४०९.(गुजराती) हितोपदेश । गजताल ~
वाहला माहरा ! प्रेम भक्ति रस पीजिये, 
रमिये रमता राम, माहरा वाहला रे ।
हिरदा कमल में राखिये, 
उत्तम एहज ठाम, माहरा वाहला रे ॥ टेक ॥ 
वाहला माहरा ! सतगुरु शरणे अणसरे, 
साधु समागम थाइ, माहरा वाहला रे ।
वाणी ब्रह्म बखानिये, 
आनन्द में दिन जाइ, माहरा वाहला रे ॥ १ ॥ 
वाहला माहरा ! आतम अनुभव ऊपजे, 
ऊपजे ब्रह्म गियान, माहरा वाहला रे ।
सुख सागर में झूलिये, 
साचो येह स्नान, माहरा वाहला रे ॥ २ ॥ 
वाहला माहरा ! भव बन्धन सब छूटिये, 
कर्म न लागे कोइ, माहरा वाहला रे ।
जीवन मुक्ति फल पामिये, 
अमर अभय पद होइ, माहरा वाहला रे ॥ ३ ॥ 
वाहला माहरा ! अठ सिधि नौ निधि आँगणें, 
परम पदारथ चार, माहरा वाहला रे ।
दादू जन देखे नहीं, 
रातो सिरजनहार, माहरा वाहला रे ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव हितोपदेश कर रहे हैं कि हे हमारे प्रिय जिज्ञासु ! अब परमेश्‍वर की प्रेमा - भक्ति रूप अमृत - रस का पान कीजिये और रमता राम से अब इस मनुष्य शरीर में ही एकत्व भावना द्वारा रमिये । हे प्यारे जिज्ञासु ! अपने हृदय रूपी कमल में परमेश्‍वर का नाम - चिन्तन रखिये, क्योंकि यही स्थान भजन करने का अति उत्तम है, परन्तु हे जिज्ञासु ! सत्य उपदेश के देने वाले सतगुरु की शरण सदैव रहना, तभी उपरोक्त सब काम सिद्ध होगा और फिर सच्चे संतों का समागम करना और अपनी वाणी से व्यापक ब्रह्म का ही वर्णन करना, तो फिर आयु के दिन आनन्दपूर्वक व्यतीत होंगे । इस प्रकार हे जिज्ञासु ! आत्म - परमात्मा की एकता रूप अनुभव ब्रह्म - ज्ञान उत्पन्न होगा । फिर सुख रूप ब्रह्म - सरोवर में एकत्व भावना रूप झूले पर झूलिये और फिर जीव ब्रह्म की एकता का विचार रूपी सच्चा स्नान करिये । हे प्रिय जिज्ञासु ! फिर तेरे सम्पूर्ण संसार के बन्धन और संचित कर्म सब नष्ट हो जावेंगे और जीवन मुक्ति रूपी फल और अमर - अभय पद पाइये । फिर तो आठ सिद्धि नौ निधि, अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष ये सब तुम्हारे आँगण में आकर नृत्य करेंगे । किन्तु सच्चा निष्कामी उपर्युक्त लक्षणयुक्त जिज्ञासु, उनकी तरफ देखता भी नहीं है । ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव महाराज कहते हैं कि केवल स्वस्वरूप ब्रह्म में ही मग्न रहता है

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