शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

पद. ४३५

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४३५. त्रिताल ~
ए ! प्रेम भक्ति बिन रह्यो न जाई, परगट दरसन देहु अघाई ॥ टेक ॥ 
तालाबेली तलफै माँही, तुम बिन राम जियरे जक नांही ।
निशिवासर मन रहै उदासा, मैं जन व्याकुल श्‍वासों श्‍वासा ॥ १ ॥ 
एकमेक रस होइ न आवै, तातैं प्राण बहुत दुख पावै ।
अंग संग मिल यहु सुख दीजे, दादू राम रसायन पीजे ॥ २ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव दर्शनार्थ परमेश्‍वर से विनती कर रहे हैं कि हे परमेश्‍वर ! आपकी निष्काम प्रेमाभक्ति के बिना हमसे अब इस शरीर में रहा नहीं जाता है । अब आप हमारे हृदय में प्रकट होकर दर्शन दीजिये, ताकि हम अतृप्त भाव से आपका दर्शन करें । हे राम जी ! आपके दर्शनों के बिना ताला = तलफ, और बेली = विलाप के सहित जीव तड़फ रहा है, जीव को शांति नहीं है । अब तो हमारा मन रात - दिन संसार की तरफ से उदास हो रहा है । हम आपके विरहीजन श्‍वास - उच्छ्वास पर व्याकुल हो रहे हैं, क्योंकि आपके अद्वैत स्वरूप का ओत - प्रोत भावना रूप रस नहीं प्राप्त हो रहा है । इसीलिये हमारे प्राण अति दुखी हो रहे हैं । हे नाथ ! आप हमारे शरीर में हृदय के भीतर हमको प्राप्त होकर दर्शनों का सुख प्राप्त कराइये । तब फिर हम जीव ब्रह्म की एकता रूप राम - रस का पान करेंगे ।

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