शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

= २०० =

卐 सत्यराम सा 卐
संझ्या चलै उतावला, बटाऊ वन-खंड मांहि ।
बरियां नांहीं ढील की, दादू बेगि घर जांहि ॥ 
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यह बिरियां तो फिरि नहिं, मन में देखू विचार। 
आया लाभहि कारनै, जनम जुआ मति हार ॥ 

यह मानव जन्म बार-बार नहीं मिलता। यह बात अच्छी तरह से सोच-परख लो। यह जन्म मोक्षरूपी लाभ को प्राप्त करने के लिए मिला है। इसी अपने सत्कर्मों से जरूर प्राप्त करो। सांसारिक मोह-मायारूपी जुए में पड़कर इस अनमोल अवसर को हार(गंवा) मत जाओ। 

संत कबीरदास !

सौजन्य -- १००८ कबीरवाणी ज्ञानामृत !

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