गुरुवार, 14 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/७-९)

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॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी", टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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सद्गुरु सामर्थ्य 
दादू सद्गुरु अँजन बाहिकर, नैन पटल सब खोले । 
बहरे कानों सुनने लागे, गूँगे मुख सूँ बोले ॥७॥ 
७ - १९ में सद्गुरु की शक्ति का परिचय दे रहे हैं : - जीवों के बुद्धि वृत्ति रूपज्ञान - विज्ञान मय नेत्र सँशय विपर्य्यादि मलों से बन्द हो जाते हैं । सद्गुरु उनमें अपना उपदेश - अँजन डालकर, उनके सब पटलों को शुद्ध करके खोल देते हैं । जो धन, विद्या, तप, बल, रूप, कुल, पद और जाति मद से बहरे हो जाते हैं, वे दीन गरीबों की बात कभी सुनते ही नहीं, गुरु उपदेश से वे भी अति नम्र होकर सबके सुख - दुख की बात सुनने लगते हैं वो जो अनाहत नाद नहीं सुन सकते थे, वे गुरु कृपा से सुनने लगते हैं । जो भगवान् के नाम तथा यशादि गान में गूँगे समान रहते हैं, वे भी गुरु उपदेश द्वारा ईश्वर नाम - यश गाने लगते हैं ।
सद्गुरु दाता जीव का, श्रवण शीश कर नैन । 
तन मन सौंज१ संवारि सब, मुख रसना अरु बैन ॥८॥ 
सद्गुरु जीव को आत्मज्ञान – महा - धन देने से दाता हैं । वे सँसार - परायण श्रवण, नेत्र, रसना, वाणी , शीश, मुख, हाथ आदि तन मन की सभी सामग्री१ को निर्दोष बनाकर भगवत् परायण कर देते हैं । 
राम नाम उपदेश कर, अगम गमन यहु सैन । 
दादू सद्गुरु सब दिया, आप१ मिलाये अैन२॥९॥ 
राम नाम के उपदेश द्वारा मन इन्द्रियों के अविषय ब्रह्म में प्रवेश करने का सँकेत करके सद्गुरु ने हमें सब कुछ दे दिया । कारण - उस राम नाम ने हमें अपने सत्य स्वरूप१ ब्रह्म से साक्षात्२ मिला दिया है ।
(क्रमशः)

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