बुधवार, 13 जनवरी 2016

= १७३ =


卐 सत्यराम सा 卐
सुमिरण का शंसा रह्या, पछितावा मन मांहि ।
दादू मीठा राम रस, सगला पिया नांहि ॥ 
दादू जैसा नाम था, तैसा लीया नांहि ।
हौंस रही यहु जीव में, पछितावा मन मांहि ॥ 
===============================
साभार ~ Krishnacharandas Aurobindo ~
जो भी व्यक्ति राम नाम का, प्रभु नाम का पूरा लाभ लेना चाहे, उसे दस दोषों से अवश्य बचना चाहिए | ये दस दोष ‘नामापराध’ कहलाते हैं | वे दस नामापराध कौन- से हैं ? ‘विचारसागर’ में आता है:
सन्निन्दाऽसतिनामवैभवकथा श्रीशेशयोर्भेदधिः।
अश्रद्धाश्रुतिशास्त्रदैशिकागरांनाम्न्यर्थावादभ्रमः |
नामास्तीतिनिषिद्धवृत्तिविहतित्यागोहिधर्मान्तरैः
साम्यंनाम्निजपेशिवस्यचहहरेर्नामापराधादशा ||
1. सत्पुरुष की निन्दा
2. असाधुपुरुष के आगे नाम की महिमा का कथन।
3. विष्णु का शिव से भेद
4. शिव का विष्णु से भेद
5. श्रुतिवाक्य में अश्रद्धा
6. शास्त्रवाक्य में अश्रद्धा
7. गुरुवाक्य में अश्रद्धा
8. नाम के विषय में अर्थवाद(महिमा की स्तुति) का भ्रम
9. ‘अनेक पापोंको नष्ट करने वाला नाम मेरे पास है’- ऐसे विश्वास से निषिद्ध कर्मों का आचरण और इसी विश्वास से विहित कर्मों का त्याग तथा
10. अन्य धर्मों(अर्थात नामों) के साथ भगवान के नाम की तुल्यता जानना-ये दस शिव और विष्णु के जप में नामापराध हैं।

1. पहला अपराध है, सत्पुरुष की निंदा:
यह प्रथम नामापराध है | सत्पुरुषों में तो राम-तत्त्व अपने पूर्णत्व में प्रकट हो चुका होता है | यदि सत्पुरुषों की निंदा की जाय तो फिर नामजप से क्या लाभ प्राप्त किया जा सकता है ? तुलसीदासजी, नानकजी, कबीरजी जैसे संतपुरुषों ने तो संत-निंदा को बड़ा भारी पाप बताया है | ‘श्रीरामचरितमानस’ में संत तुलसीदास जी कहते हैं:
हरिहर निंदा सुनइ जो काना। होई पाप गोघातसमाना।।
‘जो अपने कानों से भगवान विष्णु और शिव की निंदा सुनता है, उसे गोवध के समान पाप लगता है |’
हरगुर निंदक दादुर होई। जन्म सहस्र पाव तन सोई।।
‘शंकरजी और गुरु की निंदा करनेवाला अगले जन्म में मेंढक होता है और हजार जन्मों तक मेंढक का शरीर पाता है |’
होहिं उलूक संत-निंदारत | मोहनिसाप्रियज्ञान भानुगत ||
‘संतों की निंदा में लगे हुए लोग उल्लू होते हैं, जिन्हें मोहरूपी रात्रि प्रिय होती है और ज्ञानरूपी सूर्य जिनके लिए बीत गया(अस्त हो गया) होता है |’
संत कबीरजी कहते हैं:
कबीरा वे नर अंध हैं,
जो हरि को कहते और, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।।
‘सुखमनि’ में श्री नानकजी के वचन हैं:
संत का निंदकु महा अतताई | संतका निंदकु खुनि टिकनु न पाई ||
संतका निंदकु महाहति आरा | संत का निंदकु परमेसुरि मारा ||
‘संत की निंदा करने वाला बड़ा पापी होता है | संत का निंदक एक क्षण भी नहीं टिकता | संत का निंदक बड़ा घातक होता है | संत के निंदक को ईश्वर की मार होती है |’
संत का दोखी सदा सह काईऐ | संतका दोखी न मरै न जीवाईऐ ||
संत का दोखी की पुजै न आसा | संत का दोखी उठि चलै निरासा ||
‘संत का दुश्मन सदा कष्ट सहता रहता है | संत का दुश्मन कभी न जीता है, न मरता है | संत के दुश्मन की आशा पूर्ण नहीं होती | संतका दुश्मन निराश होकर मरता है |’

2. दूसरा अपराध है, असाधु पुरुष के आगे नाम की महिमा का कथन:-
जिनका हृदय साधन-संपन्न नहीं है, जिनका हृदय पवित्र नहीं है, जो न तो स्वयं साधन-भजन करते हैं और न ही दूसरों को करने देते हैं, ऐसे अयोग्य लोगों के आगे नाम-महिमा का कथन करना अपराध है |

3/4...तीसरा और चौथा अपराध है, विष्णु का शिवसे भेद व शिव का विष्णु के साथ भेद मानना:
‘मेरा इष्ट बड़ा, तेरा इष्ट छोटा… ‘शिव बड़े हैं, विष्णु छोटे हैं’… अथवा तो ‘विष्णु बड़े हैं, शिव छोटे हैं’… ऐसा मानना अपराध है |

5/6/7...पाचवाँ, छठा और सातवाँ अपराध है श्रुति, शास्त्र और गुरु के वचन में अश्रद्धा: नाम का जप तो करना किन्तु श्रुति-पुराण-शास्त्र के विपरीत ‘राम’ शब्द को समझना और गुरु के वाक्य में अश्रद्धा करना अपराध है | रमन्तेयोगीनः यस्मिन्सरामः | जिस में योगी लोग रमण करते हैं वह है राम | श्रुतिवेशास्त्र जिस ‘राम’की महिमा का वर्णन करते-करते नहीं अघाते, उस ‘राम’को न जानकर अपने मनः कल्पित ख्याल के अनुसार ‘राम-राम’ करना यह एक बड़ा दोष है | ऐसे दोष से ग्रसित व्यक्ति रामनाम का पूरा लाभ नहीं ले पाते |

8. आठवाँ अपराध है, नाम के विषय में अर्थवाद(महिमा की स्तुति) का भ्रम: अपने ढ़ंग से भगवानके नामका अर्थ करना और शब्द को पकड़ रखना भी एक अपराध है | जो लोग केवल शब्द को ही पकड़ रखते हैं, उसके लक्ष्यार्थ को नहीं समझते, वे लोग ‘नाम’ का पूरा फायदा नहीं ले पाते |

9. नौवाँ अपराध है, ‘अनेक पापों को नष्ट करने वाला नाम मेरे पास है’- ऐसे विश्वास के कारण निषिद्ध कर्मों का आचरण तथा विहित कर्मोंका त्याग: ऐसा करने वालों को भी नाम-जप का फल नहीं मिलता है |

10. दसवाँ अपराध है अन्य धर्मों(अर्थात अन्यनामों) के साथ भगवान के नाम की तुल्यता जानना: कई लोग अन्य धर्मोंके साथ, अन्य नामों के साथ भगवान के नाम की तुल्यता समझते हैं, अन्य गुरु के साथ अपने गुरु की तुल्यता समझते हैं जो उचित नहीं है | यह भी एक अपराध है |
जो लोग इन दस नामापराधों में से किसी भी अपराध से ग्रस्त हैं, वे नामजप का पूरा लाभ नहीं उठा सकते | किन्तु जो इन अपराधों से बचकर श्रद्धा-भक्ति से भगवान के नाम का जप किर्तन करेंगे.... वो निहाल हो जायेंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें