बुधवार, 6 जनवरी 2016

= १५२ =


卐 सत्यराम सा 卐 
दादू जब तैं हम निर्पख भये, सबै रिसाने लोक ।
सतगुरु के परसाद तैं, मेरे हर्ष न शोक ॥ 
निर्पख ह्वै कर पख गहै, नरक पड़ैगा सोइ ।
हम निर्पख लागे नाम सौं, कर्त्ता करै सो होइ ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya

परम क्रांति का नाम संन्यास है..!!
संन्यास का अर्थ है, भीड़ से मुक्त होने का साहस, संन्यास का अर्थ है, अब मैं अपनी सुनूंगा, अपनी गुनूंगा, अपने ढंग से चलूंगा, चाहे जो परिणाम हों। चाहे जो कीमत चुकानी पड़े, संन्यास का अर्थ है कि आज से मैं छोड़ता हूं वे सारी धारणाएं जो समाज ने मुझे दी थीं, आज से मैं व्यक्ति होने की घोषणा करता हूं। अब से मैं स्वतंत्रता की घोषणा करता हूं। अब से मैं परतंत्र नहीं हूं। इस क्षण के बाद अब मैं अपने से पूछूंगा क्या करने योग्य है, और उसी के अनुसार चलूंगा, फिर चाहे कष्ट उठाने पड़े और चाहे फांसी लगे, चाहे लोग हंसे, उपहास करें, चाहे लोग पागल समझें, लेकिन अब मैं अपनी सुनूंगा। अब से मैं अपना हुआ, अब से मैंने उधार होना छोड़ा! अब मैं दूसरों की मानकर, जैसा दूसरे चाहते हैं वैसा ही रहने की चेष्टा में संलग्न नहीं रहूंगा। जिसमें मुझे सुख होगा, जिसमें मुझे शांति होगी, वही मेरी जीवन दिशा होगी..!!
~ ओशो ~

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