॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
https://youtu.be/Lr-3DqWBYIE
४४१. उदीक्षण ताल ~
*आरती जगजीवन तेरी, तेरे चरण कँवल पर वारी फेरी ॥ टेक ॥*
*चित चाँवर हेत हरि ढ़ारे, दीपक ज्ञान हरि ज्योति विचारे ॥ १ ॥*
*घंटा शब्द अनाहद बाजे, आनन्द आरती गगन गाजे ॥ २ ॥*
*धूप ध्यान हरि सेती कीजे, पुहुप प्रीति हरि भाँवरि लीजे ॥ ३ ॥*
*सेवा सार आत्मा पूजा, देव निरंजन और न दूजा ॥ ४ ॥*
*भाव भक्ति सौं आरती कीजे, इहि विधि दादू जुग जुग जीजे ॥ ५ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव निरंजन राम की आरती की विधि बताते हुए आरती कर रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! अपने हृदय में उस सम्पूर्ण जगत के जीवन रूप, जगजीवन राम की आरती करिये कि हे राम ! हम आपके तेज - पुंज रूप चरण कमलों पर अपने आपको वार फेर करते हैं । और हेत रूपी हाथ से शुद्ध चित्त रूप चँवर आपके उपर ढ़ुराते हैं । और हे हरि ! आपके सामने ज्ञान विचार रूपी दीपक जगाते हैं । अनहद शब्द रूप मानों घंटा बजा रहे हैं । आप आनन्द स्वरूप के विचार रूप ही मानो आरती की गर्जन हृदय में हो रही है । ध्यान रूपी धूप कर रहे हैं और अखंड प्रेम रूप पुष्प माला आप पर चढ़ा रहे हैं तथा श्रद्धा रूप से ही आपकी परिक्रमा कर रहे हैं । इस प्रकार यह जीवात्मा रूप उपासक, आपकी सेवा रूप पूजा करता है । हे निरंजनदेव ! आप ही हमारे उपास्य देव हैं । आपके अतिरिक्त दूसरा कोई देवी - देव हमारा उपास्य नहीं है । इस प्रकार हे संतों ! भाव भक्ति द्वारा, जो हृदय में निरंजन राम की आरती करता है, वह निरंजन ब्रह्म स्वरूप होकर युग - युग में जीवित रहता है ।
अथवा हे जगत की जीवन रूप ब्रह्म वाणी ! आपके ऊपर हम न्यौछावर जाते हैं । और आपके ऊपर शुद्ध चित्त रूपी चँवर ढ़ुरा रहे हैं । और विचारपूर्वक मानो ज्ञान के दीपक जगाकर, नाना प्रकार के गाजे बाजे सहित, आपकी आरती करते हैं । नाना प्रकार के सुगन्धि रूप पदार्थों की आपके सामने धूप धुकाते हैं । इस प्रकार जो वाणी जी की आरती करते हैं, उनके सदा ही आनन्द मंगल की मानो गर्जना होती रहती है । और नाना प्रकार के सुगन्धित पुष्प, माला आपके ऊपर चढ़ा रहे हैं । और ब्रह्म - वाणी रूप दयाल ! हम आपकी बारबार परिक्रमा करते हैं । मानो यही आपकी सार सेवा पूजा है । हे निरंजनरूप वाणी ! आप ही हमारे दिव्य उपास्य देव हैं । इस प्रकार भाव भक्ति द्वारा जो ब्रह्म वाणी की आरती करते हैं, वे ही पुरुष जुग - जुग में सजीवन भाव को प्राप्त हो जाते हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें