卐 सत्यराम सा 卐
आन कथा संसार की, हमहिं सुणावै आइ ।
तिसका मुख दादू कहै, दई न दिखाइ ताहि ॥
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साभार ~ Anand Nareliya ~
एक दिन मोहम्मद ने अपने परिवार के एक युवक को कहा कि तू पड़ा—पड़ा सोया रहता है सुबह; कभी—कभी मेरे साथ चला कर मस्जिद। सुबह की नमाज भी हो जाएगी; टहलना भी हो जाएगा। ताजी हवा, सूरज का निकलना, पक्षियों के गीत। त पड़ा—पड़ा क्या करता है?
कई बार कहा, तो एक दिन वह युवक उनके साथ हो लिया। गया मस्जिद, मोहम्मद ने नमाज पढ़ी। वह भी खड़ा—खड़ा कुछ—कुछ गुन—गुन करता रहा होगा। जब लौटने लगे, तो उसे बडी अकड़ आ गयी।
गरमी के दिन थे और लोग अभी भी अपने — अपने घरों के सामने बिस्तरों पर सोए थे। उसने मोहम्मद से कहा. हजरत! जरा इन पापियों की तरफ तो देखिए! अभी तक सो रहे हैं! यह कोई समय सोने का है! यह प्रभु—प्रार्थना का समय है! इन पापियों की क्या गति होगी हजरत? मरकर ये कहा जाएंगे?
मोहम्मद तो एकदम चौंके। यह पहली दफे गया था। कल तक यह भी सोया रहा था। आज अचानक यह पुण्यात्मा हो गया! और इसकी गुन—गुन भी देखी होगी। इसको कुछ आता—वाता तो होगा नहीं, चला गया था। साथ—साथ खड़ा हो गया। देखता होगा कि मोहम्मद झुके, तो झुक जाता होगा।
मोहम्मद रुक गए। उन्होंने कहा. तू मुझे क्षमा कर। मुझसे बड़ी भूल हो गयी, जो मैं तुझे मस्जिद ले गया। तेरी तो नमाज हुई नहीं, मेरी नमाज खराब हो गयी। तू घर जा भाई! और मैं फिर वापस मस्जिद जाकर नमाज करूं।
वह युवक कहने लगा क्यों? तो मोहम्मद ने कहा कि तू न आता, वही अच्छा था। कम से कम दूसरों को पापी तो न समझता था। कम से कम यह पुण्यात्मा होने का दंभ तो तुझ में नहीं था। यह तो बड़ी गलती मुझसे हो गयी। मुझे क्षमा कर। अब ऐसी भूल दुबारा न करूंगा। अब भूलकर तुझ से न कहूंगा कि मस्जिद चल। तू घर जा, बिस्तर पर सो जा। मुझे जाने दे मस्जिद; मैं फिर नमाज करके आ जाऊं। और क्षमा महा लूं परमात्मा से कि मुझसे बड़ी भूल हो गयी।....osho
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