सोमवार, 28 मार्च 2016

= १८४ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू मन भुजंग यहु विष भर्या, निर्विष क्योंही न होइ ।
दादू मिल्या गुरु गारड़ी, निर्विष कीया सोइ ॥ 
दादू जीव जंजालों पड़ गया, उलझ्या नौ मण सूत ।
कोई इक सुलझे सावधान, गुरु बाइक अवधूत ॥ 
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साभार ~ Manoj Puri Goswami 
~ आसान रास्ता~
एक बार एक डाकू गुरु नानक के पास गया और उनके चरणों में गिरकर बोला - 'मैं अपने जीवन से परेशान हो गया हूं। जाने कितनों को मैंने लूटकर दुखी किया है। मुझे कोई रास्ता बताइए ताकि मैं इस बुराई से बच सकूं।'
गुरु नानक ने बड़े प्रेम से कहा - 'यदि तुम बुराई करना छोड़ दो तो बुराई से बच जाओगे।' गुरु नानक की बात सुनकर डाकू बोला - 'अच्छी बात है, मैं कोशिश करूंगा।' यह कहकर वह वापस चला गया। कुछ दिन बीतने के बाद वह फिर उनके पास लौट आया और बोला - 'मैंने बुराई छोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन छोड़ नहीं पाया। अपनी आदत से मैं लाचार हूं। मुझे कोई अन्य उपाय बताइए।'
गुरु जी बोले - 'अच्छा, ऐसा करो कि तुम्हारे मन में जो भी बात उठे, उसे कर डालो, लेकिन रोज-रोज दूसरे लोगों से कह दो।' डाकू को बड़ी खुशी हुई कि इतने बड़े संत ने जो मन में आए, सो कर डालने की आज्ञा दे दी। अब मैं बेधड़क डाका डालूंगा और दूसरों से कह दूंगा। यह तो बहुत आसान है। वह खुशी-खुशी उनके चरण छूकर घर लौट गया। कुछ दिनों बाद डाकू फिर उनके पास जा पहुंचा। गुरु नानक ने पूछा - 'अब तुम्हारा क्या हाल है?'
डाकू बोला - 'गुरुजी, आपने मुझे जो उपाय बताया था, मैंने उसे बहुत आसान समझा था, लेकिन वह तो निकला बड़ा मुश्किल। बुरा काम करना जितना मुश्किल है तो उससे कहीं अधिक मुश्किल है - दूसरों के सामने उसे कह पाना। इस काम में बहुत ज्यादा कष्ट होता है।' इतना कहकर डाकू चुप हो गया और फिर बोला - 'गुरुजी इसलिए अब दोनों में से मैंने आसान रास्ता चुन लिया है। मैंने डाका डालना ही छोड़ दिया है।' गुरु नानक मुस्करा दिए

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