बुधवार, 27 अप्रैल 2016

= स्मरण का अंग =(२/६१-६३)


॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= स्मरण का अँग २ =
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दादू राम नाम जलँ कृतत्वा, स्नानँ सदा जित: ।
तन मन आत्म निर्मलँ, पँच - भू पापँ गत: ॥६१॥
राम - नाम को ही जल समझकर, निरँतर इन्द्रिय - दमन पूर्वक राम - नाम - स्मरण रूप स्नान करो । ऐसा करने से ही पँच विषयों की आसक्ति से होने वाले पाप नष्ट होकर साधक के तन, मन, बुद्धि आदि निर्मल होते हैं ।
दादू उत्तम इन्द्री निग्रहँ, मुच्यते माया मन: ।
परम पुरुष पुरातनँ, चिन्तते सदा तन: ॥६२॥
उत्तम साधक इन्द्रिय - निग्रह पूर्वक निरँतर पुरातन, परम पुरुष प्रभु का चिन्तन करते हैं, इसी से उनका मन मायिक प्रपँचों से मुक्त हो जाता है ।
दादू सब जग विष भरा, निर्विष विरला कोइ ।
सोई निर्विष होयगा, जाके नाम निरंजन होइ ॥६३॥
सँपूर्ण सँसारी प्राणियों के हृदय भोग - वासना विष से भरे हुये हैं । विषयाशाविष से रहित तो कोई विरला सँत ही दीख पड़ता है । आगे भी जिसके हृदय में निरंजन नाम का निरँतर चिन्तन होता रहेगा, वही भोगाशा - विष से रहित हो सकेगा । 
(क्रमशः)

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