रविवार, 24 अप्रैल 2016

= ज्ञानसमुद्र(च. उ. ८-९) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली 
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ चर्तुथ उल्लास =*
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*शिष्य उवाच ~ सवइया*
*हे प्रभु पुरुष प्रकृति तें प्रथमहिं,*
*कौन तत्व उपज्यौ समुझाइ ।* 
*बिधि करि तत्व अनुक्रम सौं सब,*
*ज्यौं उपजै त्यौं देहु बताइ ॥*
*सूक्षम थूल भये कैसैं करि,*
*कारण कारय मोहि सुनाइ ।* 
*तुम गुरुदेव सकल बिधि  जानत,*
*अन आतम आतमा दिखाइ ॥८॥*
(शिष्य पूछता है कि आपके उपदेश से सृष्टि की उत्पति में प्रकृति-पुरुष के संयोग की बात तो समझ में आ गयी, पर) हे प्रभो ! यह तो बताइये कि प्रकृति-पुरुष के संयोग से कौन से तत्त्व की सर्वप्रथम उत्पति हुई ? तथा ये तत्त्व किस क्रम से(कौन पहले, कौन बाद में) उत्पन्न होते हैं ? यह भी यथाविधि(शास्त्रानुसार) समझा दीजिये । उनमें से कौन से स्थूल तत्त्व हैं ? कौन से सूक्ष्म तत्त्व हैं ? उनकी यह संज्ञा क्यों पडी ? इनमें किसका क्या कार्यकारणभाव है ? यह सब मुझे बताइये; आप इस शास्त्र को सांगोपांग जानते हैं, अत: आप ही इस शास्त्र में वर्णित अनात्म व आत्म पदार्थों का सूक्ष्मता तथा सरलता से उपदेश कर सकता हैं ॥८॥
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*श्रीगुरुरुवाच ~ दोहा*
*पुरुष प्रकृति संयोगतें, प्रथम भयौ महतत्व ।* 
*अहंकार तातें प्रगट, त्रिविध सु तम रज सत्व ॥९॥*
(गुरुदेव बोले-) उक्त पुरुष-प्रकृति के संयोग से सर्वप्रथम महत् तत्त्व की उत्पति हुई । उस(महत् तत्त्व) से अहंकार तत्त्व उत्पन्न हुआ । उस(अहंकार तत्त्व) से सत्त्व, रज, तम- ये तीन गुण उत्पन्न हुये ॥९॥
(क्रमशः)

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