रविवार, 24 अप्रैल 2016

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卐 सत्यराम सा 卐
सुन सुन पर्चे ज्ञान के, साखी शब्दी होइ ।
तब ही आपा ऊपजै, हम-सा और न कोइ ॥ 
बातों सब कुछ कीजिये, अंत कछू नहिं देखै ।
मनसा वाचा कर्मना, तब लागै लेखै ॥ 
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साभार ~ Ritesh Srivastava
ज़रुरी नही कि जो चीज़ किसी के लिए लाभकारी है, दूसरे के लिए भी हो ॥हरी ॐ॥
बात काफ़ी पुरानी है...गणेशपुर नरेश ब्रहमदत का राजपंडित एक बार वन में एकांत स्थान पर कोई गुप्त मंत्र जप रहा था | तभी वहीं पास लेटे एक सियार के कान खड़े हो गए, वह भी ध्यान से सुनने लगा | कुछ देर बाद राजपंडित खड़ा हुआ और बोला, ‘बस, मुझे मंत्र सिद्ध हो गया |
तभी सियार को सामने देखकर उसे आश्चर्य हुआ | ‘हा...हा...हा | अरे मूर्ख, मैंने तुझसे भी अधिक इस मंत्र पर अधिकार पा लिया है |’ इतना कहने के बाद सियार वहाँ से भाग छूटा | ‘इसे तुरंत पकड़ना चाहिए वरना यह मंत्र के द्वारा अनर्थ कर डालेगा |’ यह सोचकर राजपंडित उसके पीछे भागा |
लेकिन सियार बियावान जंगल में जा पहुँचा और सपना देखने लगा, पहले मैं शादी करुँगा और फिर मंत्र के बूते पर जंगल के सारे चौपायों को अपने अधीन कर लूँगा | जल्दी ही उसे सियारिन मिल गई | उसने उसे लालच दिया कि ‘यदि तुम मुझसे विवाह कर लो तुम जंगल के सारे जानवरों की महारानी बन जाओगी |’ सियारिन ने सियार की बात मान ली | उसके बाद सियार ने मंत्र का पाठ किया | देखते-ही-देखते सारे जानवर उसके पास खींचे चले आए |
‘आप हमारे मालिक हैं महाबली |’ सिंह ने कहा|
‘आज से आप हमारे राजा हैं |’ चीते ने कहा|
जंगल के सभी जानवरों ने आपस में सलाह-मशवरा करके सियार और उसकी पत्नी को एक सिंह पर बैठाया जो दो हाथियों की पीठ पर खड़ा था | उसके बाद जंगल के जानवरों ने सियारिन को सम्मानित किया | इतना सब कुछ होने पर सियार का दिमाग सातवें आसमान पर जा पहुँचा, बोला, ‘मेरे प्रजाजनो, आओ हम गणेशपुर पर धावा बोलते हैं |’
फिर पशुओं का विशाल समूह लेकर वह गणेशपुर जा पहुँचा | वहाँ सियार ने राजा को संदेश भिजवा दिया | जब राजा को संदेश मिला तो राजपंडित भी वहाँ मौजूद था | ‘वह कहता है कि यह नगर मेरे हवाले करो वरना युद्ध करने के लिए तैयार हो जाओ|’ राजपंडित को संदेश-पत्र दिखाते हुए राजा ने पूछा, ‘आखिर यह पशु है कौन?’ ‘वही सियार है, जो जंगल का राजा बन गया हे| उसे मुझ पर छोड़ दो | मैं उसे हराने की कोई जुगत लगाऊँगा |’ राजपंडित ने कहा| ‘बहुत अच्छा | ईश्वर तुम्हें सफलता दे |’ राजा ने कहा|
राजपंडित बाहर आ गया| उसने सोचा, पहले मुझे यह पता लगाना चाहिए कि उसका इरादा क्या है | वह सियार के पास जाकर बोला, ‘हे सर्वदाता, तुम इस नगर पर अधिकार किस प्रकार करोगे ?’ ‘मैं सिहों को गर्जना करने को कहूँगा, जिससे लोगों में भगदड़ मच जाएगी | फिर मैं शान से नगर में प्रवेश करुँगा |’ सियार ने गर्व भरे स्वर में कहा|
‘हूँ...तो यह बात है | असंभव, ये कुलीन पशु एक मामूली-से सियार की आज्ञा का पालन कभी नही करेंगे |’ राजपंडित ने कहा |
‘यह तो तुम सोचते हो | तुम देखना- सिंह मेरा आदेश मानेंगे | यहाँ तक कि यह सिहं भी जिस पर मैं बैठा हूँ, मेरे आदेश पर दहाड़ेगा |’ सियार बोला | ‘बड़े बोल न बोलो | पहले इसे गर्जना करवाकर दिखाओ | तब तुम्हें मान जाऊँगा |’ सियार ने गर्वित स्वर में कहा, ‘अपने राजा की आज्ञा का पालन करो | पूरे ज़ोर-शोर से गर्जना करो |’
फिर जब सिहं ने दहाड़ना शुरु किया तो हाथियों ने डरकर सिहं को पीठ से गिरा दिया | साथ में सियार और सियारिन भी धम्म से धरती पर जा गिरे | हाथियों को भागते देख जानवरों में भगदड़ मच गई | वे इधर-उधर भागने लगे | सियार इसी भगदड़ में हाथी के पैरों तले कुचलकर मारा गया | इस प्रकार गणेशपुर पर विजय प्राप्त करने का स्वप्न देखने वाले का अंत हो गया |
शिक्षा: वास्तविकता को समझ कर उससे समझौता कर लेने में ही भलाई है | ज़रुरी नही कि जो चीज़ किसी के लिए लाभकारी है, दूसरे के लिए भी हो | लेकिन इसी भ्रम में पड़ा हुआ था सियार | नतीजे में उसे अपनी जान गँवानी पड़ी | बड़े बोल बोलना घाटे का सौदा है ॥वन्दे मातरम्

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