मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

= ६८ =

卐 सत्यराम सा 卐
परआतम सौं आत्मा, ज्यूँ हंस सरोवर मांहि ।
हिलि मिलि खेलैं पीव सौं, दादू दूसर नांहि ॥ 
दादू सरवर सहज का, तामें प्रेम तरंग ।
तहँ मन झूलै आत्मा, अपणे सांई संग ॥ 
=========================
साभार ~ Sumantkumar Bhojane ~
गुरु पूर्णिमा पर प्राप्त एक सन्देश :

एक लहर की अपनी कोई सत्यता नहीं है, उसका अस्तित्व पानी से है । पानी सत्य है और लहर मिथ्या । लहर एक किरदार है जो पानी ग्रहण करता है । लहर का जन्म और मरण, उसका आकार उतना ही सत्य है जितनी कि लहर है और वे मिथ्या है । महत्व केवल पानी का है । वह सदा एकसा रहता है, चाहे लहरें कैसी भी हों वे अपनी कोई छाप पानी पर नहीं छोड़ती । इसी प्रकार पात्र कोई भी छाप अपने आपे पर, आत्मा पर नहीं छोडते हैं । मुझे पात्र निभाने हैं, प्रत्येक को पात्र निभाने हैं, इसलिये उचितहोगा कि आप एक व्यक्ति के रूप में अपने आप से परिचित हो जाएँ, अपने आप को पहचान लें जो पात्रों से मुक्त है । यही ध्यान है ।
- स्वामी दयानन्द सरस्वती

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें