शनिवार, 23 अप्रैल 2016

= स्मरण का अंग =(२/५५-७)


॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
= स्मरण का अँग २ =
.
दादू जियरा राम बिन, दुखिया इहिं सँसार ।
उपजै विनशै खप मरे, सुख दुख बारँबार ॥५५॥
राम - भजन बिना अज्ञानी प्राणी सुख के लिए नाना कार्य करते हुए भी दुखी ही रहते हैं, कर्माधीन उत्पन्न होते हैं और भोगों की प्राप्ति के लिए पच - पचकर क्षीण होते हैं । इस प्रकार बारँबार साँसारिक सुख दु:खों को प्राप्त करते हुये इस सँसार में जन्मते मरते रहते हैं ।
राम नाम रुचि ऊपजे, लेवे हित चित लाइ ।
दादू सोई जीयरा, काहे जमपुरि जाइ ॥५६॥
यदि प्राणी के हृदय में राम - नाम - स्मरण की इच्छा प्रकट हो जाय और प्रेम
पूर्वक मन से अखँड स्मरण को ही अपना ले, तो वही जीव जो बारँबार यम -
यातना भोगता था, यमपुरी में नहीं जा सकता, मुक्त हो जायगा ।
दादू नीकी बरियाँ आव करि, राम जप लीन्हा ।
आतम साधन सोधि कर, कारज भल कीन्हा ॥५७॥
जिस समय में मनुज देह प्राप्त करके आत्म कल्याण का साधन राम - भजन विचार - पूर्वक निष्काम भाव से करते हुये भगवत् प्राप्ति रूप उत्तम कार्य सिद्ध हो जाय, वही श्रेष्ठ समय है । दादूजी से किसी ने पूछा था - आपका अवतार तो सतयुग के किसी उत्तम समय में होना चाहिए, उसका उत्तर इस साखी में दिया है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें