॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= स्मरण का अँग २ =
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दादू राम नाम निज औषधी, काटे कोटि विकार ।
विषम व्याधि तैं ऊबरे, काया कंचन सार ॥७०॥
राम - नाम - स्मरण औषधी सभी प्राणियों की निजी है और सविधि सेवन से अनन्त कामादि विकारों को नष्ट करके प्राणी के सूक्ष्म शरीर को कंचन के समान शुद्ध कर देती है तथा विश्व के सार - तत्व ब्रह्म में मन को स्थिर करके जन्म - मरणादि भयँकर व्याधि से मुक्त कर देती है ।
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निर्विकार निज१ नाम ले, जीवन इहै उपाइ ।
दादू कृत्रिम काल है, ताके निकट न जाइ ॥७१॥
मन को विषयाशादि विकारों से रहित करके निरँतर ही निर्विकार ब्रह्म के राम आदि स्वरूप - भूत आत्मा के नामों का चिन्तन करना चाहिए । इस सँसार में अमर - जीवन प्राप्ति का सबसे सुगम और श्रेष्ठ यह एक ही उपाय है । ब्रह्म भिन्न माया कृत बनावटी ग्राम - देवादि उपास्य तो काल रूप हैं, उनके समीप भी नहीं जाना चाहिए । (१ नाम तीन प्रकार के होते हैं - कर्मज, जैसे मधुसूदनादि; गुणज, जैसे - दयालु आदि और निज, जो गुण कर्म आदि से रहित स्वरूप भूत हो, जैसे ब्रह्म, रामादि)
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स्मरण
मन पवना गहि सुरति सौं, दादू पावे स्वाद ।
सुमिरण माँहीं सुख घणा, छाड़ि देहु बकवाद ॥७२॥
७१ - ७६ में स्मरण विषयक विचार दिखा रहे हैं - मन, प्राण और बुद्धि वृत्ति का निरोध करके स्मरण करने से भजनानन्द प्राप्त होता है । एकाग्रता - पूर्वक स्मरण से विषयातीत अति आनँद मिलता है, यह हमें अनुभूत है । अत: व्यर्थ के वाद - विवादों को त्याग कर एकाग्रता - पूर्वक निरँतर हरि स्मरण ही करना चाहिए ।
(क्रमशः)
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