॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= स्मरण का अँग २ =
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दादू राम कहे सब रहत है, आदि अंत लौं सोइ ।
राम कहे बिन जात है, यहु मन बहुरि न होइ ॥४९॥
राम - भजन करने से राम, जन्म से मरण पर्यन्त सर्वकाल में सहायक होकर साथ रहते हैं और राम - स्मरण
न करने से यह प्राणी नाना दु:खों में पड़ता है । अत: हे मन ! यह मानव शरीर का
स्वर्ण अवसर पुन: शीघ्र न मिलेगा, सचेत हो ।
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दादू राम कहे सब रहत है, जीव ब्रह्म की लार ।
राम कहे बिन जात है, रे मन हो हुशियार ॥५०॥
निष्काम भाव से राम - भजन करने से आत्मज्ञान होकर सभी कर्मों का
प्रवाह रुक जाता है और जीव ब्रह्म - भाव को प्राप्त हो जाता है । राम -
भजन बिना प्राणी कर्मों के प्रवाह में बहता ही रहता है । अत: हे मन ! सावधान होकर
शीघ्र निष्काम - भाव से राम - भजन में ही लग जा ।
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परोपकार
हरि भज साफल जीवना, पर उपकार समाइ ।
दादू मरणा तहां भला, जहां पशु पँखी खाइ ॥५१॥
जीवन - सफलता का हेतु बता रहे हैं - हरि भजन करते हुए परोपकार
में लगने से ही जीवन की सफलता है । परोपकार में तो यहां तक कर्त्तव्य है कि - देह
त्याग भी ऐसे स्थान में किया जाय, जहां
शरीर को पशु पक्षी भक्षण करके तृप्त हो सकें ।
(क्रमशः)

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