॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= स्मरण का अँग २ =
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दादू निर्विष नाम सौं, तन मन सहजैं होइ ।
राम निरोगा करेगा, दूजा नाहीं कोइ ॥६४॥
राम - नाम - स्मरण से मन विषय वासना - विष से, ज्ञानेन्द्रिय अमर्यादा - विष से, कर्मेन्द्रिय व्यर्थ चेष्टा - विष से अनायास ही मुक्त हो जाते हैं । सँपूर्ण आधि - व्याधियों का अत्यन्ताभाव निरंजन राम का नाम - स्मरण ही कर सकेगा । सर्वथा निरोग होने का ऐसा सुगम और श्रेष्ठ उपाय अन्य कोई भी नहीं है । अत: नाम - स्मरण निरँतर करना चाहिए ।
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ब्रह्म भक्ति जब ऊपजे, तब माया भक्ति विलाइ ।
दादू निर्मल मल गया, ज्यूँ रवि तिमिर नशाइ ॥६५॥
जैसे सूर्योदय होने पर अँधकार नष्ट हो जाता है, वैसे ही प्राणी के हृदय में परब्रह्म की भक्ति उत्पन्न होने पर मायिक प्रेम नष्ट हो जाता है और सँपूर्ण विकार नष्ट होकर मन परम निर्मल बन जाता है ।
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मन हरि भाँवरि
दादू विषय विकार सौं, जब लग मन राता ।
तब लग चित्त न आवही, त्रिभुवनपति दाता ॥६६॥
६५ - ६७ में मन को हरि से दूर करने वाले भ्रामण का परिचय दे रहे हैं : - जब तक मन विषय - विकारों में अनुरक्त होकर इन्द्रियों के साथ भ्रमण कर रहा है, तब तक मुक्ति प्रदाता त्रिलोकी के स्वामी परमेश्वर का ध्यान चित्त में नहीं आता ।
(क्रमशः)
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