बुधवार, 27 अप्रैल 2016

= ७३ =

卐 सत्यराम सा 卐
धन्य तूँ धन्य धणी, तुम्ह सौं मेरी आइ बणी ॥ टेक ॥
धन्य धन्य धन्य तूँ तारे जगदीश, सुर नर मुनिजन सेवैं ईश ।
धन्य धन्य तूँ केवल राम, शेष सहस्र मुख ले हरि नाम ॥ १ ॥
धन्य धन्य तूँ सिरजनहार, तेरा कोई न पावै पार ।
धन्य धन्य तूँ निरंजन देव, दादू तेरा लखै न भेव ॥ २ ॥
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साभार ~ Anand Nareliya

ताओ उपनिषाद–(भाग–5) प्रवचन–88.....osho
ऐसा हुआ। एक सूफी फकीर ने एक रात सपना देखा। कुछ ही दिन हुए, उसका गुरु मर गया है। सपने में उसने देखा कि वह स्वर्ग गया है और अपने गुरु की तलाश कर रहा है। फिर उसने एक वृक्ष के नीचे अपने गुरु को प्रार्थना करते देखा तो वह बहुत हैरान हुआ कि अब किसलिए प्रार्थना कर रहे हैं? जो पाना था पा लिया, आखिरी मंजिल आ गई। स्वर्ग के ऊपर तो कुछ है भी नहीं। अब किसलिए प्रार्थना कर रहे हैं?

लेकिन गुरु प्रार्थना में था तो वह रुका रहा। एक देवदूत गुजरता था। उसने पूछा कि मैं बड़ा हैरान हूं! मैं तो सोचता था, पृथ्वी पर लोग प्रार्थना करते हैं स्वर्ग जाने के लिए। इसलिए हम भी छाती पीटते हैं और प्रार्थना करते हैं, सिर झुकाते हैं। मेरा गुरु तो स्वर्ग पहुंच गया। और यह ऐसा तन्मय बैठा है, ऐसा मगन होकर प्रार्थना कर रहा है। अब किसलिए? अब क्या पाने को है? मैं तो जानता था, सोचता था कि स्वर्ग में कोई प्रार्थना न होती होगी।

उस देवदूत ने कहा, स्वर्ग में कोई प्रार्थना नहीं होती; प्रार्थना में ही स्वर्ग होता है। जिस क्षण इसकी प्रार्थना चूक जाएगी उसी क्षण स्वर्ग खो जाएगा। प्रार्थना स्वर्ग का द्वार नहीं है, प्रार्थना स्वर्ग है। प्रार्थना मार्ग नहीं है, प्रार्थना मंजिल है। प्रार्थना साधन नहीं है, साध्य है। वह कोई साधक की अवस्था नहीं है, सिद्ध का अहोभाव है।

लेकिन अहोभाव तो तभी होगा, जब और से छुटकारा हो जाए। इसलिए यह समझ लेना जरूरी है कि जो आदमी कह रहा है और चाहिए, और चाहिए, और चाहिए, वह धन्यवाद नहीं दे सकता; वह शिकायत कर सकता है। क्योंकि वह हमेशा परेशान है, हमेशा कम है। अहोभाव कैसा? प्रार्थना कैसी? पूजा कैसी? अर्चना कैसी? धन्यवाद किसको? जो आदमी और-और की मांग कर रहा है वह परमात्मा के प्रति शिकायत से ही भरा रहेगा। उसके पूरे प्राणों में शिकायत का कांटा रहेगा, पीड़ा की तरह चुभता रहेगा, दंश देता रहेगा।

मंदिर शिकायत लेकर मत जाना। क्योंकि जो शिकायत लेकर गया वह मंदिर कभी पहुंचता ही नहीं। शिकायत लेकर परमात्मा के पास जाने की कोशिश मत करना, क्योंकि शिकायत परमात्मा से दूर ले जाने की व्यवस्था है। मांगने उसके द्वार पर जाना मत, क्योंकि मांगने का अर्थ ही है कि अभी धन्यवाद देने का क्षण नहीं आया, अभी और चाहिए।

लाओत्से कहता है, यह कैसे होता है कि तुम्हारे जीवन में ही मौत पनप जाती है। यह ऐसे होता है कि तुम और-और-और मांगते चले जाते हो।

“बिकाज ऑफ दि इनटेंस एक्टिविटी ऑफ मल्टीप्लाइंग लाइफ।’

तुम और ज्यादा करना चाहते हो, और ज्यादा करना चाहते हो। कितना ही मिल जाए, तृप्ति नहीं होती

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