गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

= विन्दु (२)७५ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= विन्दु ७५ =*
*= शिष्य वाजींद =*
.
वाजींद के वैराग्य का समर्थन करके परमज्ञानी संत प्रवर दादूजी महाराज वाजींद पर परम कृपा करके वाजींद को तत्त्व उपदेश करने लगे -
*= वाजींद को तत्त्व उपदेश =*
बन्दे हाजिरां हजूर वे, अल्लह आली१ नुर२ वे ।
आशिकां३ रा४ सिद्क५ सावित, तालिवा६ भरपूर वे॥टेक॥
वजूद७ में मौजूद है, पाक८ परवर दिगार९ वे ।
देख ले दीदार को, गैब१० गोता मार वे ॥१॥
मौजूद मालिक तख़्त खालिक११ आशिकांरा ऐन१२ वे ।
गुदर १३ कर दिल मगज भीतर, अजब है यहु सैंन वे॥२॥
अर्श१४ ऊपर आप बैठा, दस्त दाना१५ यार वे ।
खोज कर दिल कब्ज१६ करले, दरुने१७ दीदार वे॥३॥
हुशियार हाजिर चुस्त१८ करदा,१९ मीराँ महरवान वे ।
देख ले दर२० हाल२१ दादू, आप है दीवान२२ वे॥४॥
.
जो प्रेमी३ जिज्ञासु भक्त पूर्ण सत्यता५ पूर्वक भजन द्वारा भगवान् के सम्मुख रहते हैं, उनको४ उस सर्वश्रेष्ठ१ परमात्मा का रूप२ सभी में परिपूर्ण रूप से भासता रहता है ।
.
वह विश्व९ पालक पवित्र८ ईश्वर शरीर७ में विद्यमान है । उन छिपे हुये प्रभु का स्वरूप तू वृत्ति को अन्तर्मुख१० करना रूप गोता मार कर निर्विकल्प समाधि में देख ।
.
वे सृष्टि११ कर्ता प्रभु हृदय-सिंहासन पर विराजमान है और प्रेमी भक्तों को यथार्थ१२ रूप से भासते हैं । तू मस्तिक भीतर जानकार१३ हृदय में देख, यह संतों का अद्भुत संकेत है ।
.
वे सर्वज्ञ१५ सर्व सुह्रद तेरे मित्र प्रभु हृदया-काश१४ के ऊपर अष्टदल कमल में विराज रहे हैं । तू अपने मन को अपने अधीन१६ करके हृदय१७ के भीतर प्रभु का दर्शन करले ।
.
मन को भजन में सावधान और दृढ़१८ करके१९ दयालु सरदार प्रभु के सम्मुख रहते हुये प्रभु को देख ले । वे हृदय-दरबार२२ में२०प्रति क्षण२१ रहते हैं ।
.
उक्त उपदेश सुनकर वाजींद को परमशांति का अनुभव होने लगा, फिर वाजींद ने दादूजी को ही अपना गुरु मान लिया और आमेर में रहकर ही दादूजी का सत्संग करने लगे तथा दादूजी की साधन पद्धति के अनुसार ही निर्गुण ब्रह्म की भक्तिरूप साधना करने लगे ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें