रविवार, 24 अप्रैल 2016

= ६४ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू दुखिया तब लगै, जब लग नाम न लेहि ।
तब ही पावन परम सुख, मेरी जीवनि येहि ॥
दादू दरिया यहु संसार है, तामें राम नाम निज नाव ।

दादू ढील न कीजिये, यहु औसर यहु डाव ॥ 
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साभार ~ Rp Tripathi ~ 
** दुःखों से मुक्ति का सूत्र ? ** 

सम्मानित मित्रो ; यदि हम किसी एक ऐंसे स्थान पर खड़े हों ? 
जहाँ अनंत भाषायें बोली-लिखी जा रहीं हों ; तो भी हम सिर्फ उसी भाषा से संपर्क स्थापित कर पाते हैं ; जिसकी उपस्थिति पहले से हमारे मस्तिष्क में हो ; अन्य किसी भाषा से नहीं !! दूसरे शब्दों में ; बाह संसार में अच्छे या बुरे दर्शन के लिए ; हमारे मन में अच्छे या बुरे भाव की पूर्व-उपस्थिति होना ; नितांत-आवश्यक है !! इसी कारण संत कबीर कहते हैं :-- 

बुरा जो देखन मैं चला ; बुरा ना मिल्यो कोय ! 
जो दिल खोजो आपणो ; मुझसे बुरा ना कोय !! 

और चूंकि बुराई-दर्शन सभी दुखों का मूल है ; अतः इसकी मुक्ति के विषय में पुनः संत कबीर कहते हैं :-- 

दुःख में सुमरन सब करें ; सुख में करे ना कोय !
जो सुख में सुमरन करे ; तो दुःख काहे होय !! 

क्योंकि सुमरन से मन ; 
ऐंसी निर्मल दशा को प्राप्त हो जाता है जहाँ जीव मात्र को ; अपने वास्तविक स्वरूप :-- "ईस्वर अंश जीव अविनाशी ; चेतन अमल सहज सुख राशी" -- की अनुभूति होने लगती है ; जिससे वह दुःख की स्थिति से ; "सहज-सुख" अर्थात प्रयास-रहित सुख की मनोदशा को प्राप्त हो जाता है !! 

( क्या हम सहज-सुख की स्थिति में ; स्थित हैं सम्मानित मित्रो ? 
यदि हाँ ; तो हम परम सौभाग्यशाली हैं !! यदि नहीं ; तो क्यों ना हम अविलम्ब स्वांशों को ही माला के मनके बना ; प्रभु नाम का स्मरण कर ; २४ x ७ सहज-सुख की स्थिति में रहें !! ) 

******** ॐ कृष्णम् वंदे जगत गुरुम् ********


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