सोमवार, 25 अप्रैल 2016

= स्मरण का अंग =(२/५८-६०)


॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
= स्मरण का अँग २ = 
दादू अगम वस्तु पानैं पड़ी, राखी मँझि छिपाइ ।
छिन छिन सोइ संगालिये, मत वै बीसर जाइ ॥५८॥
मन इन्द्रियों के अविषय ब्रह्म को प्राप्त कराने वाली राम - नाम - स्मरण रूप वस्तु शास्त्र व सँतों की कृपा से तुम्हारे हाथ लगी है । इससे प्राप्त होने वाली दिव्य शक्तियों को भीतर ही छिपा कर रक्खो, प्रकट करने से तुम्हारे भजन में विघ्न खड़ा हो जायगा । प्रतिक्षण भजन करते रहो और सदा सचेत रहो, कहीं प्रमादवश हृदय से हरि - स्मरण हट न जाय ।
स्मरण महिमा नाम माहात्म्य
दादू उज्ज्वल निर्मला, हरि रंग राता होइ ।
काहे दादू पचि मरे, पानी सेती धोइ ॥५९॥
५८ - ६४ में स्मरण महिमा और नाम माहात्म्य कह रहे हैं - हरि स्मरण रूप रँग में अनुरक्त होने से ही मन निर्मल होकर ज्ञान - प्रकाश को प्राप्त होता है । अत: साधक केवल तीर्थों के जल से ही शरीर को धो - धोकर परिश्रम न करे, हरि - स्मरण अवश्य करे ।
शरीर सरोवर राम जल, मांहीं सँयम सार ।
दादू सहजैं सब गये, मन के मैल विकार ॥६०॥
शरीर ही तीर्थ सरोवर है, राम - नाम - स्मरण ही उसमें जल है, विश्व के सार तत्व ब्रह्म में मन का सँयम करना ही स्नान है । उक्त तीर्थ - स्नान से नाना तीर्थों में भटके बिना सहज ही हमारे मन के सँपूर्ण पाप और विकार नष्ट हो गये हैं । 
(क्रमशः)

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