रविवार, 24 अप्रैल 2016

= ६३ =

卐 सत्यराम सा 卐
एक मना लागा रहै, अंत मिलेगा सोइ ।
दादू जाके मन बसै, ताको दर्शन होइ ॥ 
दादू निबहै त्यौं चलै, धीरै धीरज मांहि ।
परसेगा पीव एक दिन, दादू थाके नांहि ॥ 
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साभार ~ Manoj Puri Goswami
धर्म जागृति क्या है ?
मनुष्य जब यह विशवास करना प्रारम्भ कर देता है कि भगवान् है, परमात्मा है तब वह उसको पाने के लिए पागल हो जाता है. यह पागलपन धर्म जागृति है. इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है जब किसी व्यक्ति को यह विशवास हो जाता है कि मनुष्य से भी कोई उच्चतर जीवन है तो उस जीवन को पाने की छपटाहट धर्म जागृति है.
प्रश्न - धर्म जागृति से पूर्व कितनी कक्षाएँ हैं?
उत्तर- धर्म जागृति से पूर्व साधक की योगयता के अनुसार भिन्न भिन्न कक्षाएँ हैं जिनमें वह प्रवेश लेता है अथवा ले सकता है.

**1 - प्राइमरी कक्षा - 
१-कथा सुनना
२-मंदिर जाना
३-तीर्थ यात्रा करना
४-अनुष्ठान अथवा कर्मकांड

**2 - माध्यमिक कक्षा - 
१-देव यज्ञ - आरती, प्रार्थना, साधू संत, गुरु, ईश्वर की उपासना
२-ऋषि यज्ञ - धर्म शास्त्र सम्बन्धी पुस्तकों का अध्ययन जैसे गीता, वेद, बाइबिल, ग्रन्थ साहिब, जैन, बोद्ध साहित्य आदि 
३-पितृ यज्ञ - अपने माता पिता, पितरों, बड़ों के प्रति सम्मान और श्रद्धा 
४-मनुष्य यज्ञ अथिति सेवा और अपने से निर्बल मनुष्य की सहायता 
५-भूत यज्ञ - पशु,पक्षियों, कीटों के प्रति कर्त्तव्य और करुणा, उनको भोजन देना आदि सेवा.

**3 - उच्च कक्षा - 
आहार - आपका भोजन जाति दोष, आश्रय दोष और निमित्त दोष से मुक्त हो. योगासन, नाड़ी शुद्धि, प्राणायाम,वाणी से जप करना. 

**4 - उच्चतर कक्षा - 
१-यम - अहिंसा,सत्य,अस्तेय(किसी के हक़ को न चुराना अथवा छीनना),
२-नियम - पवित्रता- बाहरी और आतंरिक और संतोष. इस स्तर पर आतंरिक पवित्रता महत्वपूर्ण है.
३-प्रत्याहार - इंद्रियों के आहार को कम करना 
४-धारणा - चित्त को एकाग्र करना
५-श्वास मैं नाम स्मरण

**5 - अति उच्चतर कक्षा - 
१-ध्यान - ध्यान धारणा की अगली स्थिति है.यहाँ बुद्धि निश्चिात्मक होने लगती है.
२-दृष्टा और साक्षी स्थिति. 
३-मन से लगातार नाम स्मरण

परिणाम - धर्म, समाधि, स्वरुप स्थिति, ईश्वर प्रेम, मृत्युंजय, नियंता

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