बुधवार, 20 अप्रैल 2016

= ज्ञानसमुद्र(च. उ. ३-४) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली 
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ चर्तुथ उल्लास =*
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*श्री गुरुरुवाच ~ सोरठा*
*शिष्य कहौं समुझाइ, जो तें पूछ्यौ प्रीति सौं ।* 
*सांख्य सु दैंउ बताइ, तू सुनिबे कौ योग्य है ॥३॥* 
(गुरुदेव बोले-) हे शिष्य ! तुमने जिस विषय में मुझसे स्नेहपूर्वक प्रश्‍न किया है, वह तुझे भलीभाँति समझाकर बताऊँगा । सांख्यशास्त्र का श्रवण तुझे अवश्य कराऊँगा, क्योंकि तूँ उसका अधिकारी शिष्य है ॥३॥
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*अथ सांख्ययोग वर्णन ~ डुमिला*
*सुनि शिष्य यहै मत१ सांख्य हि कौ,*
*जु अनातम आतम भिन्न करै ।* 
*अनआतम है जड रुप लिये,*
*नित आतम चेतन भाव धरै ॥* 
*अनआतम सूक्ष्म थूल सदा,*
*पुनि आतम सूक्षम थूल परै ।* 
*तिनकौ निरनै अब तोहि कहौं,*
*जिनि जानत संशय शोक हरै ॥४॥*
{१- सांख्यशास्त्र द्वैत मत को सिद्ध करता है । एक तो पुरुष(आत्मा), दसरा प्रधान(प्रकृति) । बस इन दो को अनादि सिद्ध पदार्थ जगत् के कारण मानता है । प्रकृति के स्वरुप, तज्जन्य, प्रथम सूक्ष्म(जैसे महतत्त्व वा अहंकार, बुद्धि, मन, तन्मात्रा इन्द्रिय) और फिर स्थूल(जैसे पंचभूत, कर्मेन्द्रिय आदि प्रत्यक्ष जगत्) । इन दोनों(सूक्ष्म और स्थूल) से भिन्न आत्मा वा पुरुष है ।}
हे शिष्य ! सांख्यशास्त्र का मन्तव्य संक्षेप में सुनो ! सांख्यमत में पदार्थों(तत्त्वों) का विभाजन अनात्म और आत्म भेद से दो तरह से किया गया है । उनमें से अनात्म पदार्थ(=प्रकृति) जड़स्वरुप है, तथा आत्म पदार्थ(पुरुष) चेतनस्वरुप है । अनात्म पदार्थ दोनों तरह के होते हैं- सूक्ष्म भी(जैसे महत्तत्त्व, अहंकार, बुद्धि, मन, तन्मात्रा, इन्द्रिय) और स्थूल भी (जैसे पंच महाभूत, कर्मेन्द्रिय) । आत्म पदार्थ (=पुरुष, चेतन) सूक्ष्म, स्थूल अवस्थाओं से परे(भिन्न) है । इन सब के विषय में निश्‍चयात्मक वर्णन अब मैं तुम्हें सुनाता हूँ जिसके जानने से तेरा संशय(सत्यज्ञान न मिलने से पूर्व का भ्रम, सन्देह या अज्ञान) तथा शोक(‘त्रिविध दु:ख की निवृति होकर मोक्ष कैसे होगा’- ऐसा दु:ख भरा सन्ताप) निवृत हो जायगा ॥४॥
(क्रमशः)

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