सोमवार, 25 अप्रैल 2016

= ज्ञानसमुद्र(च. उ. १०-१) =

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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली 
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ चर्तुथ उल्लास =*
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*तामसाहंकार सृष्टि ~ (चामर)गीता*
*तिहिं तामसाहंकार तैं*
*दश तत्व उपजै आइ ।* 
*ते पंच विषय रु पंच भूतनि*
*कहौं शिष्य सुनाइ ॥*
*ये शब्द सपरश रुप रस*
*अरु गंध विसय सु जांनि ।* 
*पुनि व्यौम मारुत तेज जल*
*क्षति महाभूत बखांनि ॥१०॥*
(अब गुरुदेव इन तीनों गुणों से उत्पन्न सृष्टि का विस्तार से वर्णन कर रहे हैं । उसमें सर्वप्रथम तामसाहंकार सृष्टि का क्रम बता रहे हैं । उपर्युक्त विधि से वह अहंकार तत्त्व तीन गुणों के भेद से तीन प्रकार का हुआ- तामसाहंकार, राजसाहंकार तथा सात्विकाहंकार । इन में पहले) तामसाहंकार से दस तत्त्व-  पाँच विषय तथा पाँच महाभूत उत्पन्न होते हैं । पाँच विषय यों समझाये गये हैं- १. शब्द, २. स्पर्श, ३. रुप, ४. रस, तथा ५. गन्ध । पाँच महाभूत ये कहे गये हैं- १. आकाश, २. वायु, ३. तेज, ४. जल तथा ५. पृथ्वी ॥१०॥
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*चौपई*
*ये दश तम गुण तें तुम जांनहुं ।* 
*द्रव्य शक्ति याकौं पहिचानहुं ।* 
*अब इनके लक्षण समुझाऊँ ।* 
*भिन्न भिन्न करि तोहि सुनाऊँ ॥११॥*
ये दस तत्त्व(५ विषय, ५ महाभूत) तामसाहंकार से उत्पन्न होते हैं- ऐसा तुझे समझ लेना चाहिये । सृष्टि के उत्पत्तिक्रम में इन दस तत्त्वों को द्रव्य शक्ति कहते हैं अब इन उपर्युक्त दस तत्त्वों के लक्षण तुझे अलग-अलग करके समझाता हूँ ॥११॥
(क्रमशः)

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