॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= विरह का अँग ३ =
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विरह - विलाप
ज्यों जीवत मृतक कारणे, गत१ कर नाखे आप ।
यों दादू कारण राम के, विरही करे विलाप ॥८५॥
८५ - ९२ में विरह - पूर्वक विलाप दिखा रहे हैं - जैसे जीवित वियोगिनी पतिव्रता नारी अपने मृतक पति के लिए सम्पूर्ण विषयों को त्याग कर स्वयं ही अपने देह को भस्म कर डालती है वैसे ही विरही भक्त अपने सभी अंधकार नष्ट१ करके राम के दर्शनार्थ विलाप करते रहते हैं ।
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दादू तलफ - तलफ विरहनि मरे, करि करि बहुत विलाप ।
विरह अग्नि में जल गई, पीव न पूछे बात ॥८६॥
हम विरही जन प्रभु के दर्शनार्थ बारम्बार विलाप करते हुए तड़फ २ कर मर रहे हैं, विरहाग्नि में हमारी सम्पूर्ण वासनायें जल गई हैं, किन्तु खेद है अब भी हमारे प्रियतम परमात्मा हमारे दु:ख सुख की बात हम से नहीं पूछते ।
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दादू कहां जाऊँ ? कौन पै पुकारूं ? पीव न पूछे बात ।
पिव बिन चैन न आवई, क्यों भरूँ दिन रात ॥८७॥
मुझे भगवद् - दर्शन के बिना अपने जीवन में क्षणभर भी सुख न मिल सकेगा । मैं कहाँ जाऊँ और इस क्लेश की निवृत्ति के लिए किससे प्रार्थना करूं ? जिनके पास जाकर पुकार सुनानी है, वे तो मेरे हृदय में ही स्थित हैं, मेरे संकल्प मात्र को भी जानते हैं, तो भी वे प्रियतम मेरे दु:ख - सुख की बात मुझसे नहीं पूछते । उनके बिना मेरे जीवन का एक - एक क्षण कठिनता से निकल रहा है, फिर मैं वे रात्रि दिन कैसे व्यतीत कर सकूंगा ?
(क्रमशः)
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