卐 सत्यराम सा 卐
दुख दरिया संसार है, सुख का सागर राम ।
सुख सागर चलि जाइए, दादू तज बेकाम ॥
दादू दरिया यहु संसार है, तामें राम नाम निज नाव ।
दादू ढील न कीजिये, यहु औसर यहु डाव ॥
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साभार - Rp Tripathi
** मूर्ख और ज्ञानी :: एक सँक्षिप्त परिचय **
सम्मानित मित्रो इस सत्य से हम सब भली-भाँति परिचित हैं कि :--
प्रकृति सदैव परिवर्तन-शील है !! रात के बाद दिन; और दिन के बाद रातें; आती ही रहती है !! ऋतु भी सदैव एक नहीं रहती; सर्दी के बाद गर्मी; और गर्मी के बाद सर्दी भी; आती ही रहती है !! अर्थात जब तक कोई भी प्राणी पृथ्वी के धरातल पर है; प्रकृति के इन परिवर्तनों से; अनविज्ञ नहीं रह सकता !! प्रकृति एक समय में; एक जगह रहने बाले प्राणियों पर; सदैव एक समान प्रभाव डालती रहती है !!
परन्तु सम्मानित मित्रो; हम इस सत्य से भी भली-भाँति परिचित हैं कि :-- भले ही प्रकृति; एक समय में; एक जगह रहने वाले प्राणियों पर; एक समान प्रभाव डाल रही हो ? परन्तु फिर भी; सभी प्राणी; एक समान रूप से इन परिवर्तनों से प्रभावित नहीं होंते ?
जिस प्राणी की व्यक्तिगत रूप से; सहन-शीलता; रोग निरोधक क्षमता अधिक होती है; वह इन प्रकृति के परिवर्तनों से; उतना ही कम प्रभावित होता है !! अर्थात; उतना ही कम दुःखी रहता है; या उतना ही अधिक सुखी रहता है !! और यही नहीं; प्रकृति से मित्रता रखने बाले प्राणी को तो; यह प्राकृतिक-परिवर्तन; प्रकृति के संचालक की अनुपम सौगात भी नजर आ सकते हैं !!
अर्थात वह अपने विवेक से; प्रकृति के इन सम्पूर्ण परिवर्तनों को सदैव उत्सव; अर्थात सदैव एक-समान-सुख; जिसे आनंद कहते हैं; के रूप में भी परिवर्तित कर; प्रकृति के मालिक; जिसे सच्चिदानंद कहते हैं; से भी मित्रता कर सकता है !!
उपरोक्त सत्य संत कबीर की वाणी में :--
कबीरा जा सँसार में; सुख दुःख सबको होंय !
ज्ञानी काटे ज्ञान से; मूरख काटे रोय !!
और बहुत संक्षिप्त में ज्ञानी कौन ? मूर्ख कौन ?
ज्ञानी वह :-- जिसकी इस वर्तमान पल की स्वांश; चैन की है; और मूर्ख वह जिसकी इस वर्तमान पल की स्वांश; किसी भी कारण से बैचनी की है !! और वर्तमान किसे कहते हैं ? भूत-भविष्य से रहित को वर्तमान कहते हैं !! वर्तमान की स्वांश; ना सिर्फ जीवन धारण की शक्ति देती है; वरन आनंद भी प्रदान करती है !! जैंसे जिस व्यक्ति की वर्तमान के इस पल में स्वांश नहीं चल रही; वह मृत है; और मृत व्यक्ति का कोई भविष्य नहीं होता; वैंसे ही; जिस व्यक्ति की वर्तमान की स्वांश; चैन की स्वांश नहीं हैं; उसका भी कोई सुखद-भविष्य नहीं है !!
अतः एक साधे सब सधैं !!
अर्थात; किसी भी तरह से हम इस वर्तमान की स्वांश को; शीघ्रातिशीघ्र चैन की स्वांश बनाकर ज्ञानी बन जायें; और वह भी 24 X 7; इसी में समझदारी है !! क्योंकि आनंद; कल का नहीं; आज(इसी पल) का विषय है !! गुजरे कल(भूत) की स्मृति या आने बाले कल(भविष्य) की आशा में आनंद की अनुभूति की सोच ही; आनंद के मार्ग की; सबसे बड़ी रुकावट है !!
नहीं तो हम; कितने ही अलंकारों से स्वयं को विभूषित कर लें ? स्वयं का नाम; परमात्मा के नाम पर भी रख लें ? परन्तु -- "नाम नयन-सुख; आँखों के अंधे" -- वाली कहावत हम सब पर; चरितार्थ होती ही रहेगी !!
उपरोक्त से सहमत हैं ना सम्मानित मित्रो ?
******** ॐ कृष्णम् वन्दे जगत गुरुम ********
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