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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ८० =*
*= टीलाजी का परहित का संकेत =*
फिर नला से आगे चलने लगे तब भक्तों ने प्रणाम, सत्यराम किया और दया रखने की प्रार्थना की । तब दादूजी ने अपने मधुर वचनों से उनको संतुष्ट किया फिर आगे चले । उस समय टीलाजी कुछ पीछे रह गये थे, इससे एक खेत की सीमा में से निकलकर शीघ्र ही दादूजी के पास जाना चाहते थे ।
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वे खेत की सीमा में घुसे तब खेत वाले ने उनको कहा - निगुरा है, तब ही मार्ग छोड़कर खेत में घुसा है । तब टीलाजी ने उसे कुछ भी नहीं कहा । उसके उक्त कटु वचन को सहन कर गये और शीघ्र दादूजी से आ मिले । दादूजी ने अपनी योग शक्ति से उक्त घटना को जान लिया था ।
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इससे टीलाजी को कहा - तुम्हारी क्षमा उस खेत वाले को बहुत बड़ी हानि करेगी । साधु को परहित का ही कार्य करना चाहिये । अतः उसको हानि से बचाने के लिये तुम भी जैसे उसने कहा था, वैसा ही शब्द उसको कहकर आजाओ, हम लोग यहां ही खड़े हैं, ऐसा नहीं करने से वह दुःख में पड़ जायगा ।
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गुरुजी की आज्ञा तो शिरोधार्य थी ही । टीलाजी जो आज्ञा कहकर पुनः उसी खेत में आये और उस खेत वाले को बोले - मेरे को तुमने निगुरा क्यों कहा था ? मेरे तो महान् संत दादूजी गुरु हैं किंतु जो निगुरा होता है, उसको सब ही निगुरे दीखते हैं । अतः मैं तो निगुरा नहीं हूँ किन्तु "तू निगुरा है और तेरा बाप निगुरा है ।" यह कहकर टीलाजी लौट गये ।
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खेत वाले ने जब सुना कि मेरे तो महान् संत दादूजी गुरु हैं मैं निगुरा नहीं तब वह डर गया कुछ भी नहीं बोल सका । क्योंकि वह जानता था कि दादूजी तो इस देश के राजा के गुरु हैं और समर्थ संत हैं । उनके शिष्य को मैंने निगुरा कहा, यह ठीक नहीं किया फिर उस साधु बाबा ने मेरी कोई हानि भी नहीं की थी ।
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इस प्रकार पश्चाताप करके वह मौन रह गया । उधर टीलाजी दादूजी के पास पहुँचकर दादूजी को प्रणाम करके बोले - आपकी आज्ञा के अनुसार ही कर आया हूं । दादूजी ने कहा बहुत अच्छा किया । अब वह विपत्ति से बच जायगा ।
(क्रमशः)
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