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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ८२ =*
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*= दूजनजी को उपदेश =*
उसको उस स्थित में बैठे देखकर दादूजी उनके मन के भाव को जान गये और उनके अधिकानुसार परम ज्ञानी दादू दयालुजी ने यह पद बोला -
जब घट परगट राम मिले ।
आतम मंगलाचार चहूं दिशि,
जन्म सफल कर जीत चले ॥टेक॥
भक्ति मुक्ति अभयकर राखे,
सकल शिरोमणि आप किये ।
निर्गुण राम निरंजन आपहि,
अजरावर उर लाय लिये ॥१॥
अपने अंग संग कर राखे,
निर्भय नाम निशान बजावा ।
अविगत नाथ अमर अविनाशी,
परम पुरुष निज सो पावा ॥२॥
सोई बड़ भागी सदा सुहागी,
परगट प्रीतम संग भये ।
दादू भाग बड़े वर वर कर,
अजरावर जीत गये ॥३॥
ब्रह्म साक्षात्कार संबंधी परिचय दे रहे हैं - जब अन्तःकरण में राम का आत्मरूप से प्रत्यक्ष मिलन हुआ तब जीवात्मा के चतुष्टय अन्तःकरण रूप चारों दिशाओं में तथा वाह्य चारों दिशाओं आनन्द मंगल का ही व्यवहार होने लगा है । अब सांसारिक आशाओं को जीतकर तथा अपने जन्म को सफल करके हम परब्रह्म स्वरूप में लय होने को चले हैं ।
सर्व शिरोमणि प्रभु ने ही हमको भक्ति द्वारा सांसारिक वासनाओं से मुक्त किया है और अभय कर रक्खे हैं ।
देवताओं से अति श्रेष्ठ निर्गुण निरंजन राम ने स्वयं ही हमको अपने हृदय से लगाया है व अपने निर्विकार स्वरूप के साथ हमें भी निर्विकार कर रखा है । हमने भी निर्भयता के साथ राम-नाम रूप नगारा बजाकर मन इन्द्रियों के अविषय, देवताओं के नाथ, अविनाशी अपने परम पुरुष हैं, उन्हीं को प्राप्त किया है ।
जो संतजन प्रत्यक्ष में अपने प्रियतम प्रभु के संग हो गये हैं, वे ही सदा सौभाग्य संपन्न और बड़भागी हैं । हमारे भी बड़े भाग्य हैं, जो हम उन देवतावों से अति - श्रेष्ठ परब्रह्मरूप वर को वरण करके मोह दल को जीत गये हैं ।
उक्त साक्षात्कार संबंधी परिचय सुनकर तथा ब्रह्म साक्षात्कार की स्थिति को समझकर दूजनजी परम प्रसन्नता को प्राप्त हुये । फिर प्रणाम करके अन्यत्र संत सेवार्थ चले गये और उक्त पद के अर्थ को बारंबार मनन करने लगे ।
(क्रमशः)
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