卐 सत्यराम सा 卐
करामात कलंक है, जाकै हिरदै एक ।
अति आनन्द व्यभिचारिणी, जाके खसम अनेक ॥
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साभार ~ दिव्य प्रेम
योग साधना के मार्ग पर कदम बाधाएँ रोकें, यह जरूरी नहीं। बाहरी बाधाएँ तो अक्सर साधक के आगे बेबस हो जाती हैं, पर इस मार्ग पर मिलने वाली शक्तियाँ, सिद्धियाँ और विभूतियाँ जरूर साधक को चुनौतियाँ देती हैं। ध्यान रखना होगा कि इनका मिलना छोटा- मोटा तमाशा भर है। महर्षि पतंजलि चेतावनी देते हैं कि इन शक्तियों को अर्जित करना, सिद्धियों को पाना और विभूतियों के अधिकारी बनना सच्चे साधक का उद्देश्य नहीं है। साधक तो इन्हें उपेक्षा भरी दृष्टि से देखकर आगे अपनी मञ्जिल की ओर बढ़ जाता है।
ऐसे तमाशों से कोई ऐसा अद्भुत कार्य करके दिखाना, जिससे लोग यह समझ लें कि यह सिद्धपुरुष है उपासकों के लिए कडी से वर्जित है। यदि वे इस चक्कर में पडें, तो निश्चित रूप से कुछ ही दिनों में उनकी शक्ति का स्रोत सूख जायेगा और वे अपनी कष्ट साध्य आध्यात्मिक कमाई से हाथ धो बैठेंगे। उनके लिए संसार को सद्ज्ञान दान कार्य ही इतना महत्त्वपूर्ण है कि उसी के द्वारा वे जनसाधारण के आन्तरिक, बाह्य और सामाजिक कष्टों को भलीभाँति दूर कर सकते हैं और स्वल्प साधनों से ही स्वर्गीय सुखों का आस्वादन कराते हुए लोगों के जीवन को सफल बना सकते हैं। इस दिशा में कार्य करने से उनकी आध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ेगी। इसके प्रतिकूल यदि वे चमत्कार के प्रदर्शन के चक्कर में पड़ेंगे, तो लोगों का क्षणिक कौतूहल, अपने प्रति उनका आकर्षण थोड़े समय के लिए भले ही बढ़ा लें, पर वस्तुतः अपनी और दूसरों की इस प्रकार भारी कुसेवा होनी सम्भव है। हानि ही होगी !
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