卐 सत्यराम सा 卐
दादू काहे कौड़ी खर्चिये, जे पैके सीझै काम ।
शब्दों कारज सिध भया, तो श्रम न दीजै राम ॥
==============================
साभार ~ गगन शर्मा भारतीय
राम रावण युद्ध और शक्ति पूजन-लंका-युद्ध में ब्रह्मा जी ने श्री राम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजनकर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई |
वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया | यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए | इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा | भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ | दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहजही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया |
वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमान जी सेवा में जुट गए | निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमान जी से वर माँगने को कहा | इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा - प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए | ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया | मंत्र में जयादेवी भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है | भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया |
हनुमान जी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी |
पवन पुत्र हनुमान जी की जय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें