卐 सत्यराम सा 卐
दोष अनेक कलंक सब, बहुत बुरे मुझ मांहि ।
मैं किये अपराध सब, तुम तैं छाना नांहि ॥
टीका ~ हे परमेश्वर ! हमारे में अनेकों दोष, अनेकों कलंक, अनेकों अपराध, बुरे से बुरे भरे हैं । मेरे अपराध आपसे कोई छुपे नहीं हैं ॥
अंतर की जगन्नाथ जन, जो जानो समर्थ ।
तिनसूं बात बनाइ कर, कहणी सबही व्यर्थ ॥
विनती
काम क्रोध संशय सदा, कबहूँ नाम न लीन ।
पाखंड प्रपंच पाप में, दादू ऐसे खीन ॥
टीका ~ काम - वासना, क्रोध, संशय आदि हमेशा हमारे अन्तःकरण में बने रहते हैं । आपका निष्काम नाम - स्मरण कभी भी हमने नहीं किया है । पाखंडपन का भेष, बाना और प्रपंच कहिए वाणी का आडम्बर और नाना प्रकार के पाप, इन्हीं में अपने आपको क्षीण कर दिया है ॥
(श्री दादूवाणी ~ विनती का अंग)
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