शनिवार, 6 अगस्त 2016

= विन्दु (२)८२ =


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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ८२ =*
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*= एक फकीर का आना =*
दादूजी द्वारा उक्त साखियें तथा पद सुनकर नाथ संत तो अपने आसण पर चला गया । फिर थोड़ी देर के पश्चात् एक फकीर आया और सलाम करके बोला - संतों ! यहां तो एक प्रेत आता है । वह यहां रात्रि को किसी को भी नहीं ठहरने देता है, कोई भूल से ठहर जाय तो उसे मार देता है । फकीर की उक्त बात सुनकर दादूजी ने यह पद बोला -
"समर्थ मेरा सांइयां, सकल अघ जारे ।
सुख दाता मेरे प्राण का, संकोच निवारे ॥टेक॥
त्रिविध ताप तन की हरे, चौथे जन राखे ।
आप समागम सेवका, साधू यूं भाखे ॥१॥
आप करे प्रतिपालना, दारुण दुःख टारे ।
इच्छा जन की पूरवे, सब कारज सारे ॥२॥
कर्म कोटि भय भंजना, सुख मंडन सोई ।
मन मनोरथ पूरणा, ऐसा और न कोई ॥३॥
ऐसा और न देखि हौं, सब पूरण कामा ।
दादू साधु संगी किये, उन आतम रामा ॥४॥"
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प्रभु की सामर्थ्य का परिचय देते हुये उपदेश कर रहे हैं - मेरे स्वामी निरंजन राम समर्थ हैं, संपूर्ण पापों को भस्म कर डालते हैं । मेरे हित के लिये संकोच दूर करके मेरे मन को सुख देने वाले हैं ।
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तन की त्रिताप हर के भक्त की तुर्यावस्था में रखते हैं । वे स्वयं सेवक से मिलते हैं, ऐसा संत जन कहते हैं ।
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कठिन दुःखों को दूर करके भक्तों की स्वयं ही रक्षा करते हैं । सब कार्य सिद्ध करके भक्त की इच्छा पूर्ण करते हैं ।
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कोटि कर्म और भय नाश करके सुख की वृद्धि करते हैं । मन के मनोरथों को पूर्ण करने वाला ऐसा अन्य कोई भी नहीं है ।
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मैं संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले प्रभु के बिना ऐसा अन्य कोई भी नहीं देखता हूँ । उन आत्माराम ने संतों को अपना साथी बनाया है अर्थात् वे विशेष रूप से संतों के ही पास रहते हैं । अतः संतों को प्रेत का कोई भय नहीं है ।
(क्रमशः)

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