गुरुवार, 9 मार्च 2017

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卐 सत्यराम सा 卐
दादू मैं क्या जानूँ क्या कहूँ, उस बलिये की बात ।
क्या जानूँ क्यों ही रहै, मो पै लख्या न जात ॥
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एक छोटे से कस्बे में एक आदमी ने बार बिजनेस शुरू करने की सोची ! जो जगह उसने बार खोलने के लिए चुनी वह बिल्कुल मंदिर मुख्य मार्ग के सामने थी ! मंदिर कमेटी ने इस बात का बड़ा विरोध किया कि वहां पर बार कतई नहीं खुलना चाहिए ! मंदिर के पुजारियों ने तो आत्मदाह तक करने की धमकी दे डाली और एक याचिका कोर्ट में दे दी कि कोर्ट आदेश दें की वह आदमी मंदिर के सामने बार न बनायें !

क्योंकि वह जगह कानूनन सही थी तो कोर्ट का फैसला उसके हक में आया । कमेटी के विरोध पर भी वह बिजनेसमैन नही माना उसने बार बनाने के लिए निर्माण कार्य शुरू कर दिया ! जब यह बनकर पूरा होने वाला था तो एक दिन अचानक ही जोर की बिजली कड़की और उसका बार पूरा टूट गया !
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मंदिर कमेटी के सभी लोग काफी संतुष्ट थे कि बिना किसी विवाद के उसका बार खुद ही टूट गया ! परन्तु बार के मालिक ने कोर्ट जाकर मंदिर कमेटी के खिलाफ याचिका दर्ज की कि उसका बार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर मंदिर वालों द्वारा की गयी प्रार्थनाओं की वजह से ही टूटा है ! जबकि मंदिर कमेटी ने सफाई में यह बात मानने से इंकार किया ।
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कोर्ट ने दोनों पक्षवालों को कोर्ट में आने के आदेश दिए दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जज साहब काफी असमंजस की स्थिति में पहुँच गये कि वह क्या निर्णय दें ?
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फिर जज ने दोनों पक्षों कि दलीलें सुनने व कागजी कार्यवाही देखने के बाद बोला मैं नही जानता कि मैं क्या नतीजा सुनाऊं ?
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एक तरफ बार वाला है जो भगवान से कि गयी प्रार्थना पर विश्वास करता है और उसने खुद के जीवन में हुई कई प्रार्थनाओं को कोर्ट को बताया । एक तरफ मंदिर के वे अधिकारी है । जो रहते हर समय मंदिर में हैं और प्रार्थना में विश्वास नहीं करते जिन्होंने कई ऐसे उदाहरण दे डाले प्रार्थना करने से कुछ नहीं होता ।
जज साहब असमंजस में हैं 
?
?
?
?
वो आस्तिक व्यापारी 
या 
वो नास्तिक मन्दिर कमेटी सदस्य के सदस्य ।

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