गुरुवार, 9 मार्च 2017

= स्वप्नप्रबोध(ग्रन्थ ५/११-१२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*(ग्रन्थ ५) स्वप्नप्रबोध*
*स्वप्नै चौरासी भ्रम्यौ, स्वप्नै जम की मार ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, नहिं डूब्यौ नहिं पार ॥११॥* 
स्वप्न में कोई अपने घर में पुत्रादि का नया जन्म पा जाय या भरी जवानी में मर जाय, जागने पर सही स्थिति समझकर उसको दोनों ही स्थितियों के प्रति न हर्ष होता है, न शोक ॥११॥ 
.
*स्वप्नै मैं मरिबो करे, स्वप्नै जन्मै आइ ।*
*सुन्दर जाग्यौ स्वप्न तें, को आवै को जाइ ॥१२॥*
स्वप्न में कोई स्वयं अपनी मृत्यु देखे या दूसरी योनि में अपना जन्म देखे जाग्रदवस्था में उन दोनों ही स्थितियों को लेकर कोई हर्ष-शोक नहीं होता ॥१२॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें