गुरुवार, 16 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/७९-८१)


#daduji 
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
सब चतुराई देखिये, जे कुछ कीजे आन ।
दादू आपा सौंपि सब, पिव को लेहु पिछान ॥७९॥ 
निरंजन राम से निष्काम पतिव्रत को छोड़कर अन्य जो कुछ भी सँसारी प्राणी करते हैं, वह सब सँसार बन्धन में फंसने की चतुराई ही देखी जाती है । अत: निष्काम पतिव्रत द्वारा अपने को परब्रह्म के समर्पण करके निरंजन राम रूप स्वामी को आत्म रूप से पहचानो ।
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*पतिव्रत* 
दादू दूजा कुछ नहीं, एक सत्य कर जान । 
दादू दूजा क्या करे, जिन एक लिया पहचान ॥८०॥ 
८० - ८६ में पतिव्रत सम्बन्धी विचार प्रकट कर रहे हैं - परब्रह्म से भिन्न जो सँसार प्रतीत हो रहा है, वह ब्रह्म का विवर्त्त है, ब्रह्म से भिन्न नहीं । मात्र एक ब्रह्म को ही सत्य जानो । जिन ज्ञानी जनों ने अद्वैत ब्रह्म को आत्म रूप से जान लिया है, उनका यह विवर्त्त रूप द्वैत क्या कर सकता है ? 
कोई बांछे मुक्ति फल, कोई अमरापुरि बास । 
कोई बांछे परमगति, दादू राम मिलन की प्यास ॥८१॥ 
कोई तो अपने किये कर्म का फल - सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य, सायुज्य, नामक चार प्रकार की मुक्ति चाहते हैं । कोई देवताओं की पुरी स्वर्ग का निवास चाहते हैं । कोई अति उत्तम गति चाहते हैं किन्तु हमें तो केवल निरंजन राम का साक्षात्कार करने की ही अभिलाषा है । 
(क्रमशः)

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