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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= अथ विन्दु ९५ =*
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*= शिष्य संतों की निरंजन राम का नाम दृढ़ाना =*
उक्त प्रकार लोक कल्याण करते हुये दादूजी महाराज के निज स्वरूप में जाने का समय समीप आ गया तब दादूजी महाराज ने अपने शिष्य संतों को निरंजन राम का नाम स्मरण दृढ़ता पूर्वक हृदय में धारण करने का उपदेश किया । वे बोले -
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“दादू नीका नाम है, आप कहैं समझाय ।
और आरम्भ सब छाड़िदें, राम नाम ल्यौ लाय ॥”
स्वयं भगवान् भी बारबार अपने भक्तों को समझा - समझा कर कहते रहते हैं कि - “मेरे नाम चिन्तन द्वारा मेरे परायण रहने वाला भक्त ही मुझे प्रिय होता है ।” इस भगवद् - वचन से भी नाम स्मरण परम श्रेष्ठ साधन सिद्ध होता है । इसलिये जन्म - मरण रूप चक्र में फिराने वाले निषिद्ध कर्म, सकाम शुभ कर्म आदि अन्य सभी आरम्भों को त्याग कर राम नाम-स्मरण में ही निरंतर अपनी वृत्ति लगाते रहना चाहिये ।
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“छिन छिन राम संभालतां, जे जिव जाय तो जाय ।
आतम के आधार को, नाहीं आन उपाय ॥”
प्रतिक्षण राम के नाम का स्मरण करते रहो, यदि स्मरण करते समय प्राण प्रयाण का समय भी आ जाय तो भी चिन्ता नहीं क्योंकि - राम - स्मरण से भिन्न अन्य कोई भी ऐसा सुगम साधन नहीं है, जिसका आश्रय लेकर सर्व साधारण आत्मकल्याण करने में समर्थ हो सके ।
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“दादू एक राम की टेक गहि, दूजा सहज सुभाइ ।
राम नाम छाड़े नहीं, दूजा आवे जाइ ॥”
तुम तो निष्काम भाव से केवल निर्गुण राम की उपासना का ही दृढ निश्चय करो । लोक - सेवा, योग - क्षेम, और विचारादि दूसरे साधन उसके अंग रूप होकर स्वाभाविक ही होते रहेंगे । राम - नाम - स्मरण रूप साधन साधक को नामी की प्राप्ति कराये बिना मध्य में नहीं त्यागता है और नाम-स्मरण विहीन यज्ञ व्रतादि करने वाले अन्य सकामी साधक जन्म - मरण रूप संसार में ही आते जाते रहते हैं ।
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“दादू निमष न न्यारा कीजिये, अंतर तैं उर नाम ।
कोटि पतित पावन भये, केवल कहतां राम ॥”
प्रभु के नाम को अपने हृदय के भीतर से एक निमेष भी अलग नहीं करना चाहिये । केवल राम - नाम का स्मरण करके ही अमित पतित, पवित्र होकर जन्मादि संसार से मुक्त हो गये हैं ।
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“कछु न कहावे आपको, सांई को सेवे ।
दादू दूजा छाड़ि सब, नाम निज लेवे ॥”
जब साधक अपने को भक्त योगी आदि कहलाने का प्रयत्न न कर के तथा मायिक प्रपंच को हृदय से हटा कर के सत्य, ब्रह्म राम आदि निज नामों का स्मरण करते हुये भगवद् भक्ति करता है, तब उसका स्मरण वास्तविक स्मरण समझा जाता है ।
(क्रमशः)
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