शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

= विन्दु (२)९८ =

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९८ =*
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*= रज्जबजी ने दादूजी का महत्त्व बताया =*
“गुरु दादू रु कबीर की, काया भई कपूर । 
रज्जब अज्जब देखिया, सगुण हि निर्गुण नूर ॥ 
गुरुदेव दादूजी महाराज का और कबीरजी का शरीर तो कपूर ही हो गया है अर्थात् जैसे कपूर का आकार और भार कुछ भी नहीं रहता है, वह आकाश में लीन हो जाता है । वैसे ही उक्त दोनों महात्माओं के शरीरों के आकार भारादि कुछ भी नहीं रहे । रज्जबजी कहते हैं - कबीरजी की कथा तो हमनें कानों से ही सुनी थी कि उनका शरीर भी अन्तर्धान हो गया था किन्तु गुरुदेव दादूजी महाराज का शरीर पालकी में देखते - देखते ही कपूर के समान अदृश्य हो गया यह प्रत्यक्ष देखा है । आत्मा तो संतों की परमात्मा में मिलती ही है, यह तो वेदादि से सुनते आ रहे हैं किन्तु यह महान् आश्चर्य देखने में आया है, जो सगुण शरीर था वह भी निर्गुण स्वरूप हो गया है । 
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यह कहकर रज्जबजी ने कहा - 
जो जोनी आया नहीं, मरना किस विधि होय । 
रज्जब ऐसे परम-गुरु, कोटि न मध्ये कोय ॥
अर्थात् जो माता के योनि द्वार से नहीं आये तब उनका मरना भी कैसे हो सकता है ? भाव यह है - मुनिवर सनकजी ही अपनी योगशक्ति द्वारा बालक बनके और योगशक्ति से ही एक नौकाकार सिंहासन की रचना करके, उस पर कमल पुष्प - दल बिछा के उस पर शयन करते हुये साबरमती नदी के प्रवाह में बहते हुये अहमदाबाद के लोधीराम नागर को मिले थे । 
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अतः न तो सनकजी माता के गर्भ से जन्मे थे और न दादूजी जन्मे थे । सनकजी ने अपनी योग शक्ति से दादूजी का शरीर धारण किया था । उसी का संकेत रज्जबजी ने उक्त साखी में किया है कि “जो जोनी आया नहीं, मरणा किस विधि होय ।” जो जोनि द्वार से नहीं आये तो उसका मरना भी कैसे हो सकता है ? मरना होता तो संस्कार करने के लिये शरीर अवश्य रह जाता । यह तो प्रत्यक्ष ही है, जो मरते हैं उनके शरीर रह जाते हैं । वे तो योगिराज थे मरने जैसी लीला करके अपने प्रथम स्वरूप को प्राप्त हो गए हैं । दादूजी जैसे परम गुरु तो कोई कोटिन में विरले ही होते हैं । फिर बोले -
जम्बुक खाय अग्नि क्या जारे, माठी गड़े सु कौंन । 
दादू मिले दयाल से, ज्यों पानी में लौंन ॥
जब शरीर ही नहीं रहा तब वाई संस्कार किसका करैं और किसको गीदड़ खायें । अग्नि संस्कार किसका करें और किसको अग्नि से जलाये । भूमि संस्कार किसका करें और मिट्टी में किसको गाड़ा जाय । दादूजी तो जैसे पानी में नामक मिल जाता है, वैसे ही दयालु परमात्मा में मिल गये हैं और उनका शरीर भी अदृश्य हो गया है ।
(क्रमशः)

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