बुधवार, 12 अप्रैल 2017

= मन का अंग =(१०/३७-९)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०* 
ये सब मन का भावता, जे कुछ कीजे आन ।
मन गह राखे एक सौं, दादू साधु सुजान ॥३७॥
ज्ञान, भक्ति, वैराग्यादि दैवी गुणों से भिन्न निषिद्ध विषय - भोगादि की बातें और क्रियायें की जाती हैं, वे सभी मन को ही प्रिय लगने वाली हैं, कल्याणकारक नहीं । जो मन को अभ्यास, वैराग्य द्वारा पकड़ कर एक अद्वैत ब्रह्म के चिन्तन में ही संलग्न रखता है, वही उत्तम ज्ञान सँपन्न सँत है ।
जे कुछ भावे राम को, सो तत कह समझाइ ।
दादू मन का भावता, सबको कहैं बनाइ ॥३८॥
मन को प्रिय लगने वाली बातों की रचना करके तो सभी कोई कहते हैं किन्तु उन से मानव का पतन ही होता है । अत: जो कुछ राम को प्रिय लगने वाली भक्ति ज्ञानादि की बातें हैं, उन्हीं को कहकर अज्ञानियों को वह राम - तत्व समझाना चाहिए ।
*चानक - उपदेश*
पैंडे पग चालै नहीं, होइ रह्या गलियार ।
राम रथ निबहै नहीं, खाबे२ को हुशियार ॥३९॥
३९ में साधन में सावधान करने का आक्षेप पूर्वक उपदेश कर रहे हैं - यह अजित मन साधक - अश्व, निरँजनराम की प्राप्ति के साधन भक्ति वैराग्यादि - रथ को लेकर परमार्थ - पथ में एक पैर भी आगे नहीं चलता, बड़ा आलसी हो रहा है किन्तु विषय - उपभोग - दांणा खाने२ के लिए तो बहुत होशियार रहता है । ऐसा करना उचित नहीं, राम प्राप्ति साधन सप्रेम सदा करना चाहिए । 
(क्रमशः)

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