गुरुवार, 7 जनवरी 2021

= ४४० =

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*#श्रीदादू०अनुभव०वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग धनाश्री २७(गायन समय दिन ३ से ६)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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४४० - *आरती* । त्रिताल
इहि विधि आरती राम की कीजै,
आत्मा अंतर वारणा लीजै ॥टेक॥
तन मन चँदन प्रेम की माला,
अनहद घँटा दीन दयाला ॥१॥
ज्ञान का दीपक पवन की बाती,
देव निरंजन पाँचों पाती ॥२॥
आनँद मँगल भाव की सेवा,
मनसा मंदिर आतम देवा ॥३॥
भक्ति निरँतर मैं बलिहारी,
दादू न जानै सेव तुम्हारी ॥४॥
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४४० - ४४४ में निरंजन राम की आरती की पद्धति बताते हुये आरती कर रहे हैं निरंजन राम की आरती इस प्रकार करनी चाहिए और अन्त:करण के भीतर ही उन पर निछावर होना चाहिए ।
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तन और मन को चन्दन बनाओ, प्रेम मय पुष्पमाला पहनाओ और उन दीनदयालु के आगे अनाहत नाद रूप घँटा बजाओ, ज्ञान - दीपक जलाओ ।
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पँच - प्राण रूप वायु की पाँच बत्ती बनाओ, उन निरंजन देव पर पँच, ज्ञानेन्द्रिय रूप तुलसी - पत्र चढ़ाओ ।
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इस प्रकार आनँद रूप मँगला आरती करो । भाव मय सेवा करो । उन आत्म - स्वरूप निरंजन देव का मंदिर बुद्धि ही है ।
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हे प्रभो ! किस प्रकार की सेवा आपको प्रिय है, यह आप ही जानते हैं, मैं नहीं जानता, किन्तु मैं मति - मँदिर में निरँतर आपकी भक्ति करते हुये आप पर निछावर होता हूं ।
(क्रमशः)

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