🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
*दादू सम कर देखिये, कुंजर कीट समान ।*
*दादू दुविधा दूर कर, तज आपा अभिमान ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु ---------दया
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एक समय अरब के सिपाहियों ने मुहम्मद साहब का पीछा किया । मुहम्मद साहब के साथ उस समय केवल एक व्यक्ति था । सिपाहियों को समीप आया देख कर साथी ने कहा - इस पास की खाई में छिप जाना चाहिये। मुहम्मद -इस पर मकड़ी का जाला है । साथी - इसे मैं तोड़ डालता हूँ । मुहम्मद - ऐसा न करो, गरीब मकड़ी ने इसे बड़े परिश्रम से बनाया है । साथी - अपनी जान बचाने के लिये हिंसा का विचार नहीं करना चाहिये । मुहम्मद - यदि हम दूसरों की रक्षा न करेंगे तो हमारी रक्षा कैसे होगी ?
मुहम्मद की यह बात साथी को समझ में आ गई । ये दोनों युक्तिपूर्वक जाले को न तोड़ कर खाई में जा छिपे । सिपाही वहां आये किन्तु यह सोचकर कि खाई में धुसे होते तो जाला अवश्य टूटता, लौट गये मुहम्मद साहब अपने साथी के सहित उनके आक्रमण से बच गये और खाई से निकल कर जहां जाना था चले गये ।
दया करे से होत है, रक्षा निश्चय मान ।
मकड़ी पर करके दया, मुहम्मद बचे सुजान ॥१२६॥
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