शनिवार, 9 जनवरी 2021

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*#श्रीदादू०अनुभव०वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग धनाश्री २७(गायन समय दिन ३ से ६)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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४४२ - उदीक्षण ताल
अविचल आरती देव तुम्हारी,
जुग जुग जीवन राम हमारी ॥टेक॥
मरण मीच जम काल न लागै,
आवागवन सकल भ्रम भागै ॥१॥
जोनी जीव जनम नहिं आवै,
निर्भय नांव अमर पद पावै ॥२॥
कल्विष१, कश्मल२ बन्धन कापे३,
पार पहूँचे, थिर कर थापै ॥३॥
अनेक उधारे तैं जन तारे,
दादू आरती नरक निवारे ॥४॥
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हे निश्चल निरंजन देव ! आप की आरती हम भक्तों की प्रति युग में जीवन रूप रही है ।
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आप की आरती करने से दु:ख रूप मरण, मृत्यु, यमदूत और काल, जीव के पीछे नहीं लगते । लोकान्तर में जाना - आना रूप चक्कर मिट जाता है ।
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जीव चौरासी लक्ष योनियों में जन्म कर सँसार में नहीं आता, निर्भयता पूर्वक नाम - चिन्तन करता हुआ अमर पद रूप अपने स्वरूप को प्राप्त करता है । 
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आपकी आरती करने से नाना प्रकार के विकार१(कल्विष१) और पाप रूप बन्धन२(कश्मल२) कट३ जाते हैं । साधक आपकी आरती करके सँसार से पार पहुंचे हैं ।
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आरती करने के फल ने उन्हें आप परब्रह्म के स्वरूप में स्थिर करके स्थापन किया है । आपकी आरती करने से आपने अनेक भक्तों का दु:खों से उद्धार करके उन्हें सँसार से पार किया है । आपकी आरती प्राणी को नरकादिक क्लेशों से बचाती है ।
(क्रमशः)

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