रविवार, 10 जनवरी 2021

*तन, मन, धन को हरि के अर्पण*

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*दादू रचि मचि लागे नाम सौं, राते माते होइ ।*
*देखेंगे दीदार को, सुख पावेंगे सोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
*शतधन्वा वैवस्व नहुष, उतंग भूरिदबल ।*
*यदु ययाति शरभंग, पूरु दियो योवन बल ॥*
*गय दिलीप अम्बरीष, मोरध्वज शिवि र पंडु ध्रुव ।*
*चन्द्रहास अरु रंति, मानधाता चकवै भुव ॥*
*संजय समीक निमि भरद्वाज, वाल्मीकि चित्रकेतु दक्ष ।*
*तन मन धन अर्पि हरि मिले, जन राघव येते राज रिष ॥५५॥*
अपने तन, मन और धन को हरि के समर्पण करके इतने राजर्षि हरि को प्राप्त हुये हैं- *{षष्ठम अंश}*
*५१.मान्धाता-* पृथ्वी के चक्रवर्ती राजा राजर्षि मान्धाता इक्ष्वाकु वंशीय महाराज युवनाश्व के पुत्र थे । युवनाश्व के पेट से इनका जन्म हुआ था । ये उन राजाओं में से थे, जिन्होंने वैष्णव-यज्ञ करके उत्तम लोक प्राप्त कर लिये थे । इनकी राजधानी अयोध्या थी । ये महान् प्रतापी और धर्मात्मा थे । सौभरि ऋषि ने इनसे एक कन्या माँगी थी । राजा ने यह सोचकर कि- वृद्ध हैं इनको कौन चाहेगी, कहा-मेरी पचास कन्या हैं उनमें से जो आपको वरण करे उसी को ले जाइये । मुनि सबको दिव्य रूप में दिखाई दिये इससे पचासों ने ही उनको वरण कर लिया । राजा ने पचासों ही दे दी । 
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*५२.संजय-* राजर्षि संजय सौवीर देश के राजा थे । इनकी माता का नाम विदुला था । दूसरे संजय गवल्गण नाम सूत के पुत्र थे, जो मुनियों के समान ज्ञानी और धर्मात्मा थे । आप धृतराष्ट्र के मंत्री तथा व्यासजी के शिष्य थे । व्यासजी की कृपा से इन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी, उससे ही ये धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का समाचार सुनाते थे । धृतराष्ट्र के साथ आप भी वनवासी बने थे । 
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*५३.समीक-* समीक एक वृष्णि वंशी वीर थे । ये द्वारिका के सात महारथियों में से एक थे । ये द्रौपदी के स्वयंवर में भी गये थे । धृतराष्ट्र इनके बल-पराक्रम से शंकित हुये थे ।
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*५४.निमि-* राजर्षि निमि इक्ष्वाकु के पुत्र और विदेह देश के राजा थे । ये यज्ञ कराने के लिये वसिष्ठ जी को बुलाने गये थे । वसिष्ठ बोले- मैंने पहले इन्द्र का निमंत्रण स्वीकार किया है । उनका यज्ञ कराकर शीघ्र ही आपके आ जाऊंगा । वसिष्ठ आये तो देखा, राजा गौतमजी से यज्ञ करा रहे हैं । तब वसिष्ठ ने राजा को शाप दिया- “तू विदेह हो जा ।” राजा ने भी वसिष्ठ को शाप दे दिया- “आप भी विदेह हो जाइये ।” फिर ब्रह्माजी ने वसिष्ठ को शरीर दिया तथा राजा को कहा- तुम्हारा निवास सबकी आँखों की पलकों में रहेगा । निमि के पास नवयोगेश्वर भी पधारे थे । उनका संवाद श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्द में है, उसे अवश्य पढ़ना चाहिये । 
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*५५.भरद्वाज-* भरद्वाजजी प्राचीन ऋषि हैं, आपने भरतजी का आतिथ्य किया था । सीता और लक्ष्मणजी के साथ रामजी भी आपके आश्रम पर पधारे थे । आपकी कथा रामायण में विस्तार से है ।
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*५६.वाल्मीकि-* आदि कवि वाल्मीकिजी रामायण के रचयिता प्रसिद्ध हैं । सप्तर्षियों को लूटने की चेष्टा करना, ऋषियों के उपदेश से विरक्त होना, सप्तर्षियों का इनको मरा मरा मन्त्र का उपदेश देना, सहस्त्र युग बीतने पर पुनः सप्तर्षियों का इन्हें खोजकर वल्मीक से निकालना, वाल्मीकि नाम रखना आदि इनकी कथा अति प्रसिद्ध है ।
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*५७.चित्रकेतु-* राजर्षि चित्रकेतुजी की कथा पद्य टीका पद्य ६७ में आ चुकी है । 
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*५८.दक्ष-* ब्रह्माजी के दाहिने अँगूठे से उत्पन्न एक महर्षि, ये महा तपस्वी एवं प्रजापति थे । इनकी कथायें पुराणों में विस्तार से प्राप्त होती है ।
अपने तन, मन, धन को हरि के अर्पण करके इतने राजर्षि हरि को प्राप्त हुये थे ।
(क्रमशः)

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